बौद्ध वैधकम तथा जीवक जीवनं | Bauddha Vaidyakam Tathaa Jiivak Jiivanam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२४ कर सोचने लगा कि यदि में मगघराज सेनीय विस्विसार को दारण में जाकर राजवेय जीवक कुमार भ्रत्य को इसकी चिकित्सा के लिये मांग लाऊ तो खम्भव हे मेरी कुछ का दीपक न घुझे। यही निदचय करके घह मगधाधिपति के पास पड़ंचा ओर पुत्र के रोग की सब अवस्था सुनाकर जीचक वेय की याचना की । महाराज ने दयादं चित्त होकर राजवेद्य को इस्र सेठ के पुत्र की चिकित्सा के छिये प्रार्थना की । जीवक ने भी राजाजश्ा को दिरोधारण कर बनारख की ओर प्रस्थान किया। बनारस पहुंच उस लड़के का अच्छी प्रकार से परीक्षण किया । परीक्षा के अनन्तर उसने उस लड़के की स्त्री को कमरे में रहने दिया और बाकी सब नर नाथ्यिं को बाहर निकाल पक पड़दा डाल दिया । श्रेछ्ठि पुत्र को एक थम्से से बान्घकर भगवान्‌ जोवक ने उसका पेट चीर डाला और गुच्छा गुच्छा हुई २ आन्त्रों को बाहर निकाल लिया । निकाल कर उस लड़के की सामने खड़ी स्त्री को मिली हुई आन्त्र दिखाकर बेद्य बोला कि देचि यही कारण था कि तेरा पति रोगी दुयल ओर पीला था । इसी गुच्छे के कारण वह कुछ न पचा सकता था । कुमार भृत्य ने आन्त्रों के गुच्छे खोल दिये और आन्त्रें उद्र में असली जगह पर रख्व कर पेट सो दिया ओर ऊपर से मरहम लग। दी। थोड़े खमय बाद चहद सेठ का लड़का नारोग ओर स्वस्थ हो गया । अपने पुत्र को नोरोग देखकर सेठ ने सोलह सहस््र क्षपण जीवक की भेंट दी ओर उसने प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण की । उन दिनों उज्ेनी का राज्ञा पगोट पाण्डुरोग से पोड़ित था अपनी रोग निवृत्ति के लिये वह अनेक वेद्यों को प्रचुर घन




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