उजले पोश बदमाश | Uajale Posh Badamash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.12 MB
कुल पष्ठ :
37
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३ )-
राजरानी--अरे वादर छापकी झछ “घर की मुर्गी दाल
बराबर” आपके भाई क्या दुय, गोया जर खरीद अफ्रीका ' के
इबशी गुलाम हुय जब जी चाहा गला घाट दिया !
संठजी--अजी तुम यद्द बातें जाने भी दो, क्या नामाकूल
पचड़ा बीच में ले बेठी दो कि करे भी द्ोने को झाई । दमारी बला
से कोई जीवे या मरें, यहां तो दर वक्त चेन की बंसी बजती है.
में वो पणिडतां के बहुत कुछ रोने धोने पर पंचायत में चलो
गया था ।
राजरानी--खर यद्द न॑ उरूर कहूँगी कि इन्सान से नफ़रव
करना आपके यहां मद्दापाप लिखा है ।
संठ--यहद छपे हुए शासतरों में लिखा होगा, दम लोग छपे
हुए शासतर द्दी नहीं मानन, क्यांकि शासतर छपवाना भी हमारे
मज़ददब के ख़िलाफ़ हैं ।
( मन में ) दखा ! हम लाग पदिलेही कहते थे कि शासतर न
वा पर कान सुनता हू; कददत हूं साहब धरम प्रचार होगा ।
घरम का परचार हुआ हूं डियां तक हमारे घरके भेद जानने लगीं।
राज रानी--ठा संठ जी छप हुए शाख्र तो झापकें बहुत से
मन्दिरों में रखे हुय हूं ।
सठ जी--जिन मन्दिर में छुपे हुए शासतर पहुंच गये हैं
हस उन मन्दिरों को मन्दिर दी नहीं मानते ।
राज रानी-झरे सादब ! क्यों इतना सुभेद मूठ बोलते हैं कल.
दी तो मेन आपके लालाजां का मन्दिर से निकलते हुये देखा है ।
सेठ जो--चद्द दमारा बाप नददीं कोई और गधा होगा ! -
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