संक्षिप्त सूरसागर | Sankshipt Sursagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४ ] खूरसारावल़ी में वे कहते हैं -- गुरुप्रसाद होत यह दरसन सरसदि बरस प्रवीन । शिव विधान तक करउ बहुत दिन तऊ पार नहिं छीन ॥ श्रथात्‌ सूरसारावठी सूरदास ने ६७ वर्ष की श्रवस्था में नाई । यदि जन्म-संवत्‌ १५४५ मानें तो सारावठी का सैवत्‌ १६१२ निकलता है। मिश्रवन्धु्नों का झनुमान है कि साहित्यहरी श्रार खूरसारावली लगभग एक समय बनी होगी श्रार इस प्रकार सूरदास का. जन्मकाल लगभग १४४० स० है। पर इससे दृढ़ श्रनुमान यह है कि सूरदास जा विट्रलनाथ के भी समकालीन थे उनके पिता वल्लभाचाये से कम से कम १० वर्ष छोटे रहे होंगे । साहित्यटहरी दृष्कूटों का सैग्रह है । सूर- सारावठी सूरसागर का संक्षेप है। यह मानने में काई श्रापत्ति नहीं हे कि सारावली साहित्यलहरी के पीछे बनी । बावू राघाकृष्णदास ने लिखा है कि मुझे सूरदास के ८० वर्ष तक जीवित रहने का पक्का प्रमाण मिला है । वह प्रमाण लिखा नहीं है पर यदि उसे मान लें तो सूरदास का खत्युकाल लगभग १९२ वि० सं० ठहरता है। श्रनुमान से इतना कह सकते हैं पर जब तक प्राचीन हस्तलिखित अ्न्यों के भाण्डार में थधिक खोज न हे। ततर तक निश्चय-पूर्घफ कुछ नहीं कह सकते ।. सूरसागर के समान ब्रहदुअन्थ श्रनेक वर्षों में बना श्रनुमान से सिद्द है । एक स्थान पर वे कहते हैं-- राग घनाश्री । हरि हैं सब पतितन के राव । का करि सके बरावरि मेरी सा ता माहिं बताव ॥ ब्याघ गीघ श्ररु पतित पूतना तिनमें यढ़ि जा । तिनमें श्रजामेट गणिकापति उनमें मैं शिरमार ॥ जहूँ तहूँ सुनियत यहै बडाई मा समान नहिं श्रान । श्रय रहे श्राजु कालि के राजा मैं तिनमें सुठतान ॥




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