विश्व - इतिहास (प्राचीन काल ) | Vishv Itihas (prachin Kaal)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा उल्लेखनीय मत डा० डेविडसन ब्लेक का है। आपकी राय में आदिम मानवसृष्टि पूर्व मायोसीन युग (सवा करोड़ वर्ष पुर्व) में वानरो की उस कोटि से उत्पन्न हुई थी जिससे वनमानुस और क्रमश मनुष्य का विकास हुआ । उसका - समूह उत्तरी भारत से ही अफ्रीका की ओर बढ़ता गया । यह मत मनुजी के कथन से मिलता-जुलता है एतह्देशप्रसुतस्य सकाशादग्रजन्मन इलोक के झेषार्थ को अश पृथिव्यां सबंमानवा उसकी पुष्टि करता है । चरित्रम दाब्द की व्याख्या व्यापक रूप से करने मे आपत्ति की विशेष गूंजाइदा न होनी चाहिए । मनु अथवा कालिदास के कथनो का स्रोत विज्ञानमूलक न होते हुए भी अनुश्नति या विश्वास वस्तुस्थिति के अनुसार हो सकता है । . इस मत के माननें मे कुछ झंकाओ को टूर करने के लिए एल्सवर्थ हण्टिगटन नें यह निद्चित किया कि तिब्बत और उसके आस पास के भूमाग मे आदिम मनुष्य का होना अधिक सम्भव है । यह क्रान्तिकारी घटना बीस या तीस लाख वर्ष पूर्व हुई. जब हिमालय समुद्र की सतह से कुछ ऊँचा रहा होगा । उस युग में तिब्बत और उसके आसपास के प्रदेश जल और वृक्षादि वनस्पतियों से भरे हुए थे । ज्यो-ज्यो हिमालय उठता गया और वातावरण शुष्क होता गया त्यो-त्यो वनो की सघनता कम होती गयी और घाटियाँ तथा मैदान निकलते गये जो घास से हरे-भरे थे । उनसे आकर्षित होकर अनेक प्रकार के पशु जिनसे हिसक पशु भी रहे होगें घर उधर घमते-फ़िंरते रहे । दलो के बढने और भोजन की प्राप्ति के लिए बलिष्ठ और उत्साही वृत्द आगें बढ़ते विखरते और फँलते चले गये । मनुष्यों के कुछ वन्द नष्ट हो गये कुछ कम विकसित हुए और कुछ वनमानुस की अवस्था में पीछे रह गये । उपर्युक्त बलिप्ठ और उद्यमशील वृन्दो की वृद्धि और विकास अनपातत. शीघ्नता से हुए यहाँ तक कि वे वनमानुस से प्रगतिशील मनुष्य-वृन्द हो गये और चारो ओर फैल गये। तिब्बत में आदिम मनुष्य की सृष्टि का होना स्वामी दयानन्द भी मानते है यद्यपि कालगणना मे -मेद है । महामारत में एक अनु- श्रति के अनसार सप्तचर तीथे के पास वितस्ता की लोकप्रिश्वत देविका नदी के तट पर विभ्रो की सृष्टि को सकेत है । एक विद्वान्‌ की राय में विश्र से आशय आये का है । नर-नारायण के वदरिकाश्रम मे तप करने की पौराणिक कथा सम्भव है कि आदिम मनुष्य के बदरिकाश्रम के आस-पास होने का संकेत रखती हो । इसी प्रकार की अन्य कल्पनाएँ हो सकती है किन्तु अभी तक कोई सन्देहरहित सिद्धान्त प्रतिष्ठित नही ही पाया । यह मी बहुत सम्भव है कि एंशिया और अफ्रीका .




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