संस्कृत नाटक समीक्षा | Sanskrit Natak Samiksha

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Sanskrit Natak Samiksha by इन्द्रपाल सिंह - Indrapal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ब्रह्मा ने वेंदो से सामग्री लेकर नाट्यवेंद की रचना की हो । किन्तु वेदों मे ऐसे संकेत अवश्य मिलते है जिनसे वॉदिक काल मे नाटकों की स्थिति सिद्ध होती है । ऋग्वेद के सुक्तो से सोमविक्रय के समय होनेवाले अभि- नय का पता चलता है । महाब्रतस्तोम के अवसर पर कुमारयाँ सृत्य- गान के साथ अग्नि की परिक्रमा करती थी । शुक्ल यजुवंद की वाज- सनेय संहिता के तीसवे अध्याय की छठवी कशिडका में शेलूष शब्द आया है जिसका अये है अभिनेता । कहा जाता है कि एक सूत को नृत्त के लिए और शेलूष को गान के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए सामवेद के स्तोत्र तो रागवद्ध है ही जिससे ज्ञात होता है कि वैदिक युग मे सगीतपुर्ण विकासावस्था में था । वैदिक यज्ञ प्रधानतः अनुकृति ही थे | कौशीतकी ब्राह्मण मे यज्ञ के पुरोहित सत्य करते हुए वर्णित है 1 उसी ब्राह्मण में संगीत गाव नृत्य और वाद्य? यज्ञयागादि का ही एक भाग कहा गया है । इससे यह सिद्ध हो जाता है कि वेदिक युग मे वे सभी उपादान प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं जो नाटक के विकास के लिए अपेक्षित है । द वाल्मीकि रामायण मे नट नतंक नाटक छृत्य का उल्लेख अनेकों स्थलों पर मिलता हैं । उृत्य तथा नांटकीय इृष्य उस समय नगरो और प्रासादो में होते थे । मामा के घर दुःस्वप्न देखने से चिन्तित भरत को गीत उृत्य और आनन्द प्रदायक नाटकों से ही प्रसन्न करने की चेष्टा की गई थी । सहाभारत में भी नट नाटक गायक तथा सूत्रघार इत्यादि नाटकीय शब्द आये है । हरिवश पं मे जो महाभारत का ही अंग है स्पष्ट निर्देश है कि उस समय रामायण का नाटक के रूप मे प्रदर्शन होता था | दखनाभ के वध अर प्रद्य म्न के विवाह के प्रकरण में रामायण नाटक और कौवेररम्भाभिसार नामक नाटकों के प्रदर्शन का उल्लेख विस्तार से किया गया है। यह भी कहा गया है कि प्रसिद्ध अभिनेता एक नाटक मे विष्णु भगवात्‌ का जन्म उनकी राक्षसों के मारने की इच्छा की पूर्ति के हेतु प्रस्तुत करते है ।




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