महाभारत के पात्र भाग - २ | Mahabharat Ke Patra Vol-ii

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आचार्य नानाभाई - Achary Nanabhai

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हरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyaya

हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छाक्षागृदद थ घटा इतनी जल्दी न कर । कुन्ती वोली । माई भीमसेन | अमी हम लोगों को फुछ समय तरकीष से काम ठेना पढ़ेगा । युधिध्िर घीर-से समसाने छगे। थोड़े समय थाद हम छोग अपने परों पर स्पड़े जायेंगे । दुम-पाँच वीर राजा हमारे साथ हो जायंग द्रव्य फो भी थोड़ी अनुकूउता होगी सौर स्रेगों पर इमारा प्रमाव भी ज्यादा पढ़ने छोगा । तय फिर इम जो फुछ फरना चाहेंगे वद्द करा सकेंगे । इसी विचार से उस दिन मेने विदुर चाचा का फइना मान लिया ोर दम सब छोग यदाँ शा गये । तो फ्रि आप पड़े हैं सोच-समफकफर जो ठीफ समझ घ्दी करे । भीम न घीमी आवाज़ में कद्दा । भीम को शान्त करके युधिप्तिर उस आदमी की शोर फिरे हो कड्दो तुम हमारी क्या मदद करोगे ? विदुर ने तुमसे क्या कद दिए? महात्मा विदुर का मुमे हुक्म है कि पुरोन छ्णपक्म की चखतुद्शी फे दिन ठास के महूठ में साग ठगावेगा इसढिए तुम पहले जाकर एक घही-सी सुर बनाओ । उस सुरग का एक मुँद मद में रस्खना कोर दूसरा सीधा गंगा नदी फे किनारे निकले ऐसा फरना । दूसरा मुँद तो झावेगा दुर्योधन फे मदद फे घीर्चोबीच । सीम थोठा । मीमसेन शान्त रद्दो । अच्छा सो हुम सुरंग तैयार करो ।




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