हिमालय की यात्रा | Himalaya Ki Yatra

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Himalaya Ki Yatra by काका साहब कालेलकर - Kaka Saheb Kalelkarदादा धर्माधिकारी - Dada Dharmadhikari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विनय हिमालयका यह प्रवास सन्‌ १९१२ के अरसेमें किया था । पांच-छह बरसके बाद मिस प्रवासका वर्णन सावरमतीके सत्याग्रह आश्रममें बैठकर लिखना शुरू किया नोर खण्डण मुसे मन्‌ १९३० के करीब पूरा किया। जब कभी समय मिला और किसी स्नेहीने प्रेरणा दी अक-दो प्रकरण छिख दिये। लिस ढंगसे यह किताव लिखी गयी है। गुजरातके जनसमुदायमें मं अितना घुलमिल गया था और गांधीजीकें नवजीवत के द्वारा लोगोंकि भितनें संपर्केमें आया था कि लोगोंने जिस प्रवास-वर्णनकों घड़े चावसे पढ़ा । गुजरातीमें जिस कितावकी छह आवुत्तिया हो चुकी है (८ बादमें जिसका मराठी अनुवाद हुआ। महाराष्ट्री होनेके कारण बहांके लोगोने भी अेक परिचित व्यक्तिके प्रवास-वर्णनके तौर पर शिसका स्वागत किया । अब यही प्रवास-वर्णन हिन्दीमें प्रकाशित होने जा रहा है। मुझे पता नहीं हिन्दीभापी जनता भिसका कंसा स्वागत करेगी । हिन्दी-जनता मुझे राष्ट्रभापा-प्रचारककी हैसियतसे हो पहचानती है। जवसे महात्माजीने नागरी और गमुर्दू दोनो लिपिके स्वीकार पर जोर दिया और मैने असका प्रचार शुरू किया तवसें हिन्दीभापी जनता कुछ अप्रमन-्सी हम है। मेरे सनातनी मस्कारोंसे वह परिचित नहीं है। परिचित होती तो शायद चन्द छोग मेरे भुदू लिपिके स्वीकार पर अधिक नाराज हो जाते जब मेरे मित्र दादा धर्माधिकारीजीने बड़े प्रेमसे हिमालयके प्रवासवग हिन्दी अनुवाद करना स्वीकार किया तब हिन्दुस्तानी प्रचारका धारम्भ हुआ था। मेंने भुनसे कहां कि जिस पुम्तकका सारा वापुमण्डल केवल हिन्दू समाजके सामाजिक-घामिक जीवनसे सम्बन्ध रखता है। जिसके पाठ्यगण भी अुमी ढंगकें होगे। जिसलिये भिसे हिन्दुस्तानी च॑ ोमें अुतारनेका मयत्न न करें। जैसों मेरी शौली युजरानीमें है वैसी हो हिन्दोंमें प्रतिविस्यित हो जाय यहीं बिस कितावके लिये जिप्ट है। श्ऊ




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