मानव - शारीर संरचना और कार्य | Manav-sharir Saranchna Aur Karya

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Manav-sharir Saranchna Aur Karya by एलबर्ट टोके - Elbart Tokeनरेश वेदी - Naresh Vedi

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नरेश वेदी - Naresh Vedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानव-शरीर सामान्य परिचय 15 देह के तंत्र श्राइए अब हम देह की प्रमुख सक्रियताश्रों पर सरसरी नजर डाल ले । हमे इस बात को याद रखना चाहिए कि झ्रागामी भ्रध्यायों में हम इन्हीं बातो पर अ्रधिक विस्तार से विचार करेगे। आकृति 1 मे देह की बाह्माकृति दी गई है ग्रौर उसके प्रमुख प्रातरिक श्रग दर्शाए गए है । देह की सरचक इकाइयां--सभी सजीव वस्तुएं (प्राणी तथा पौधे दोनो ) श्रतीव सुकष्म खडो से मिलकर बने है जिन्हे कोशिकाए कहते हैं । ये संरचना तथा कार्य दोनों ही की इकाइयों का काम देती है । जिस पदार्थ से कोशिका बनती है उस प्रारापदा्थे को जीवद्रव्य या प्रोटोप्लाज्म कहते है। हर प्राणी (गौर मानव) कोशिका का विशेष लक्षण यह है कि उससे एक सघनतर भाग नाशिक होता है जो एक कम सघन दानेदार भाग--कोदिका-द्रव्य या साइटोप्लाज्म-- से घिरा रहता है । कोशिका-द्रव्य के बाह्य सीमात को कोशिका-शिल्‍ली कहते है (श्राकृति 2) । समान प्रयोजन के लिए समूहबद्ध एक ही प्रकृति की कोशिकाएं ऊत्तक कहलाती है। पेशीय तत्रिकायिक झ्रादि विभिन्‍न ऊतकों को एक बड़ी संरचक इकाई मे वर्गवद्ध किया जा सकता है जिसे इन्द्रिय या भ्रंग कहते है । प्रत्येक ग्रंग (जठर या झ्रामादय नेत्र वृक्क श्रादि) का एक निद्चित कार्य है । जिन झंगो के संयुक्त कार्यों से श्रघिक बड़ी झ्रावश्यकताओओ की पूर्ति होती है वे कोशिकापीणलली बी दर कक ट् न श्न् क कि व १ दि क कोशिका-द्रच्य ताशिक श्राकृति 2--कोशिका मिलकर किसी एक तंत्र (परिवहनीय पाचक उत्सर्गी श्रादि) का निर्माण करते है। इन सभी भागों का एकीकृत संग्रह जीव (मनुष्य कुत्ता पेड मक्खी श्रादि) हैं। सभी वहुकोशी जीव शभ्रपनी नाना सक्रियताश्रो का संचालन श्रम-विभाजन के सिद्धात के भ्रनुसार करते है--उनके कुछ विशेष अंग विशिप्ट उपयोगो की चिदिष्टता प्राप्त कर लेते हे । पाचक तत्र--हम जो खाना खाते है वह सामान्यत. इतना जटिल होता है कि देह की कोशिकाओ्ो को तुरन्त उपलब्ध नहीं हो सकता । जैसा कि हम देख चुके है शरीर के इईंघन हमारे खाए हुए भोजन के खडन से उत्पन्न पदार्थ ही हैं । इसलिए पाचक तत्र का कार्य जटिलतर भोजन को सुध्मतर श्रौर रासायनिक दृप्टि से सरलतर पदार्थों मे परिवर्तित करना है । निगले जाने पर भोजन मुख से ग्रसनी मे भर फिर एक पेशीय नली--ग्रसिका या ग्रास-तली--में जाता है जो उसे जठर या झ्रामाशय मे ले जाती है। आरामाशय मे भोजन मथा जाकर छोटे-




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