विस्मृति के गर्भ में | Vishmriti Ke Garbh Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोबरैलेका प्रथम दरशेन श्शु घर ले गया लेकिन उसी समयसे उसपर कई मुसीबते पड़ेनी शुरू हुई । 1 ही । कं एक बार मकानकी छुत गिर गई जिससे उसके घरवाले वाल-बाल बचे । उसकी स्त्री बीमार हो गई श्र कई सप्ताइ तक उसके बचनेकी कोई आशा न थी । वह मुक्ते विश्वास दिला रहा था कि डाक्टर श्र वैद्य उस रोगको पहिंचान भी ने सके थे । बेचारेने जो कुछ ४ फ्ये इतने दिन तक कमाकर बचाये थे वह सारे ही बंकके दिवालेमे खतम हो गये। और श्रन्तमें एक दिन जब नालन्दासे वह श्रपने घर विहार जा रहा था तो गाड़ीसे उतरते वक्त उसका पैर प्लेटफीा में के नीचे पड़ गया और वह धड़ामसे गाड़ीके पहियों के नीचे जा पड़ा संयोग अच्छा था जो गाड़ी न चल पड़ी नहीं तो बस वही काम तमाम था तों भी उसे बहुत चोट आई श्रौर उसकी दाहिनी कलाई ही उखड़ गई इसके लिये कितने ही दिनों तक घर बैठा रहना पड़ा । 1० इतना सब भरुगत लेनेपर वह इस परिशणामपर पहुँचा कि यह गोबरैला ही इन सारी झाफतोकी जड़ है । यह निष्कर्ष निकालनेके लिये क्‍या प्रमाण था इसे मै नहीं कद सकता । कमजोर ढठिमाग तथा मिथ्या- विश्वातत रखनेवाले लोग ऐसी श्राकस्मिक घटनाश्रोंको लेकर तरह- तरहके दकियानूसी ख्याल गढ़ लेनेसे बड़े उस्ताद होते हैं । अन्तमे उसने यही निश्चय किया कि जैसे हो वैसे इस बलासे पिंड छुड़ाना चाहिये । रामेश्वरने किसी प्रकार उस पड़िकाकों तीन ससाह रक्‍्खा था । उसने उसपरके लपेटे हुए कपड़ेपर स्पष्ट शिवनाथ जौहरी लिखा देखा था । इसी समय शिवनाथ दानापुरमे अपने घरपर सार डाले गये । इस रहस्यमयी मृत्युको पढ़कर रामेश्वरके लिये अब एक घण्ठटा भी उसे झपने पास रखना कठिन था श्रौर साथ ही इसके विषयमे किंसीको कुछ सूचना देनेमें भी उसे भारी भय सालूम होता था । जब वहें झच्छा होकर अपनी नौकंरीपर लौटा तो वह साथम गोवरेलेको मी ले आये




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