श्रृंखला की कड़ियाँ | Shrinkhala Ki Kadiyan

Shrinkhala Ki Kadiyan by श्री महादेवी वर्मा - Shri Mahadevi Verma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महादेवी वर्मा - Mahadevi Verma

Add Infomation AboutMahadevi Verma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
की कड़ियाँ ह आवरण में पली देवियोँ झंख्य अन्याय इसलिए नहीं सद्दती कि उनमें प्रतिकार की शक्ति का अभाव है वरन्‌ यद विचार कर कि पुरुष-समान के. न्याय समझ कर किये कार्य को अन्याय कह देने से वे क्तेव्यच्युत दो जावेगी । वे बड़ा से बड़ा त्याग प्राणों पर खेलकर हंसते-दैंसते कर डालने पर उद्यत रहती हैं परन्दु उसका मूल्य वह्दी है जो बलिपशु के निरुपाय त्याग का होता है । वे दूसरों के इश्चितमानर पर किसी भी सिद्धान्त की रक्षा के लिए जीवन की बाजी लगा देंगी परन्तु श्रपने तक श्रौर विवेक की कसौठी पर उसका खरापन बिना जॉचे हुए --शतः यह विवेकद्दीन झादर्शाचरण भी उनके व्यक्तित्व को झधिक से अधिक संकुचित तथा समाज के स्वस्थ विकास के लिए झनुपयुक्त बनाता जारदादे। दर्पण का उपयोग तभी तक है जब तक वह किसी दूसरे की श्ाकृति को अपने हृदय में प्रतिविम्बित करता रहता है अन्यथा लोग उसे निस्थैक जानकर फेंक देते हैं । पुरुष के झन्धानुसरण ने ख्री के व्यक्तित्व को अपना दर्पण बनाकर उसकी उपयोगिता तो सीमित कर दी दी साथ दी समाज को भी झपूण बना दिया । पुरुष समाज का न्याय है स्त्री दया पुरुष प्रतिशोधमय क्रोध है स्त्री मा पुरुष शुष्क कर्तल्रय है त्री सरस सहानुभूति और पुरुष बल है स््री दृदय की प्रेरणा । जिस मकार युक्ति से काटे हुए काष्ठ के छोटे बड़े विभिन्न श्ाकार ब्राहे खणडों की जोड़कर इम श्रेखणड चतुष्कोण या इत्त बना सकते हैं परन्तु उनकी विभिन्नता नष्ट करके तथा सबको समान श्राकृति देकर इम उन्हें किसी पूर्ण वस्ठ का झाकार नहीं दे सकते उसी प्रकार स्री-पुरुष के प्राझतिंक -मानसिक वैपरीत्य-द्वारा ही हमारा समाज सामझस्यपू्ण श्र आअखणड़ दो




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now