कबीर साहिब का साखी - संग्रह | Kabir Saheb Ka Sakhi Sangrah
 श्रेणी : धार्मिक / Religious

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
5.23 MB
                  कुल पष्ठ :  
142
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्दे र तो संत भाव है  जो. मरे झेद बताये । घन्य सिष्य घन भाग तेंदिं  जो ऐसी संधि पे 0१३९) जन फबीर   केहिं सेव । वार पार म॒ नहीं  नगो नमो गुरु देव ॥ ३७ झूठे शुरू का अंग गुरू मिला न सि मिला  लाजने दांव । दोऊ. दे र में  चद़िं पायर की. नाव 0९0 जा का उुर है धरा  चेला निपद लिरंघ  । तघ  दोऊ रु परंत त२१ जानंता नदीं  बूकि किया नहिं गो । झ्ंघे उूंघा मिला  रा बृतावे फीन ॥रै0 कबीर पूरे अर बिना  प्रा सिष्य न शोय। दाकनर .. दोय ॥४ त गुरु जोी सिद लालची  दर पुरा. स्तर न पिला  सुनी अपूरी सीख । स्वॉग जती रंग पहिरि के  घर पर मँगे.. भीख 0 में गरू में भाव) गुरू गुरू   गुरू... गुरू सोई गुरु नित बंदिये  ( जो सब बतावे दाव   ९) बेहद गरु और । कनफूका गु का  का गु उचद का गरु जब पिलै  ( तब ) ले ठिकाना ठौर 0७ चीन्दा नादिं । गुरू किया हे देंद्र का  सतगुर उवसागर के जाल में  फ़िरि फिरि गोता खादहि ॥८ जा गुरु हूँ श्रम ना मिंटे  श्रांति न जिद की जाय । गुरु तो. ऐसा चादिगे च्ातारूना ऐसा. चाहिये  देव सबद... उखाय    ्झ न - -एर् कल्कुल बंद ईै। ह४ जानकार  भेदी । (दे) तपन   (४) भट
 
					
 
					
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