कबीर साहब की शब्दावली भाग 2 | Kabir Saheb Ki Sabdawli Bhag Ii

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Kabir Saheb Ki Sabdawli Bhag Ii by श्री कबीर साहिब - Shri Kabir Sahib

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कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।

कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी ह

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपदेश दे ॥ शब्द २८ ॥ चल हंता सतलोक हमारे, छोड़ो यह संसारा हो ॥ टेक ॥ यहि संसार काल है राजा, करम को जाल पसारा हो । चौददद खंड वसे जाके मुख, सब को करत झअहारा हो ॥ १ ॥ जारि बारि कोइला करि डारत, फिरि फिरि दे औऔतारा हो । ब्रह्मा बिस्खु सिव तन धरि आाये, धर को कौन बिचारा हो ॥ २॥। सुर नर मुनि सब बल ढल मारिन,चौराी में ढारा हो । _ मद्ध झकास झाप जहैं बेठे, जोति सबद उजियारां हो ॥ ३ ॥ सेत सर्प सबद जहेँ फूसे, हंसा करत बिदह्वारा हो । कोटिन सूर चंद छिपि जेहें, एक रोम उज्चियारा दो ॥ ४ ॥ वही पार इक नगर बसतु है, बरसत झसृत धारा हो । कहे कबीर सुनो धमदाता, लखो पुरुष दरबारा हो ॥ ४५ ॥। ॥ शब्द रु || सतसँग लागि रहो रे भाई, तेरी बिगरी बात बनिजाई ॥टेका! दौलत दुनियाँ माल खजाने, बधिया बेल .चराई । जबही काल कै डंडा बाजे, खोज खबरि नहिँ पाइं ॥ १ ॥ ऐसी भगति करो घट भीतर, बोड़ कपट चतुराइ । सेवा बँदगी रु श्रधीनता, सहज मिलें गुरु आई ॥ २ ॥। कहत कबीर सुनो भाई साधो, सत्तगुरु बात बताई । यह दुनियाँ दिन चार दहाढ़े, रहो झलख लो लाई ॥ ३ ॥ ॥ शब्द दे० ॥ मन न रँगाये रँंगाये जोगी कपड़ा ॥ टेक ॥। आसन मारि मन्दिर में बेठे। नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा ॥ १ ॥ कनवों फड़ाय जोगी जयवा बढ़ौले । दाढ़ी बढ़ाय जोगी दोहे गैले बकरा ॥ २ ॥




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