शासनदेव पूजा रहस्य | Shasandev - Pooja Rahasya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शासनदेव पूजा रहस्य]. जुड़ पूज्य हो जायेगे किन्दु पुज्युता भक्ति... से.्रददी_ आती न्‍ सुयम से भराती है. से आती है. भर देव सयुम के. नितातू अयोग्य है - अत वे सवेथा श्रपुज्य हैं । शक्ति करना कोई अहसान नहीं है जो कृतज्ञता ज्ञापन की जाय । शासन देवों की जि श्रद्धा के बजाय केवल पलियोग्‌ है ड्गूटी- ही हु घ्रदत गकल हि है हा के परिवार का पूजन न करने (निकररिय पर चक्रवर्ती से सेवको को फल की प्राप्ति नही होती उसी तरह छासन देवों की पूजा किये बिना जिनेन्द्र से फल-प्राप्ति नहीं होती अत. दासनदेव-पूजा विधेय है । उत्तर -दसनदेवो को जिनेन्द्र के परिवार के बताना. जितेन्द्र को देवगति का देव (असेयमी बनाता है श्र शासन देवी को मदुस्ययि का सबभी मत्य बनाना है यह उल्टी गरर को मनुष्यगति का सयमी मनुष्य बनाना है-यह उल्टी गगा वहाना हूँ जा जिनेन्द्र तथा देव दोनो का हो भ्रव्शवाद है । ऐसे भ्रवर्णवादो से कोई पूजा कभी विधेय नहीं हो सकती । जिनेन्द्र तीन लोक के स्वामी हैं श्रौर _शासनदेव उनके किंक्र्‌ हूँ । मालिक और नौकर को एक बताना मूढता है । प्रन .-जिस तरह चपरासी या श्रहलकार को कुछ रकम देने से सरकारी काम सिद्ध हो जाता है उसी तरह शासनदेवों को श्र देने से घर्म-कार्ये सिद्ध हो जाता है । उत्तर बा ज्य कर्मचारी को व्यक्तिगत रकम देना रिश्वत है । इसका देने भर लेने वाला दोनो काननन श्रपराधी हैं । उसी तरह शासनदेवो को भ्रर्ण प्रदान करना भी जैन शासन मे घामिक जुर्म है में है डर शी प्रइन .-जिन-प्रतिमा के साथ शासन-देवता क्षत्र-पाल नव- ग्रह गधर्व यक्ष नाग किन्नरादि की मूरतिया भी पाई जाती है अत. ये सब देवगण पुज्य है ।




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