निरुक्त कोश | Nirukta Kosh 1984 Ac 5798

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) अयें में भिनतता है, उनका अवुक्तभ अलग-अलग है, जेसे--चादाण (१७६), आदाथ (१५८०), आयाण (२१०), जआायाथ (२११) गादि । एक ही तारा के अनेक शब्द, जिनका प्राकृत और शंस्कृत रूप सिस्त-भिनत हैं, उनका अतुकम भी एक साथ नहीं है, जैसे--जरिह (बहूँतु), अरहंत (अरयान्त), आवस्सभ (नोचश्यक) , आवासय (आवासक) भादि । निसक्त कोश को समृद्ध बनाने की दृष्टि से पाद-टिप्पणों में अनेक निरुकतों का समावेश किया गया है । मूल अंधे को स्पष्ट करने के लिए यत्र- तत्र आगम के व्याख्या प्रन्थो के संदर्भ हिन्दी अनुवाद सहित दिए गए हैं, जैसे--आयरिय, आवासय, मासायथा आदि । आमम व्यास्या प्रस्थों के अति रिक्त इस प्रन्थ में संस्कृत, पाली के अनेक कोशों तथा व्याकरणों का उपयोग पाद-टिप्पण मे किया गया है । भूल निरुक्त के संवादी तथा भिनतार्थ वाले अस्यान्य निसकतों का नतिदेश किया सया है । अर्थ की स्पष्टता के लिए अनेक स्थलों मे घातुओं का निर्देश भी है । निरुक्तों के प्रकार वैदयाकरणाचायों ने निरुक्त के पांच प्रकार बताए हैं । वे सभी प्रस्तुत शथ में सोदाहरण उपलब्ध हैं, यथा-- १. बर्णागम--वे तिरुक्त जिनमें वर्ण का आगम होता है। यथा-- हुस । 'हसतीति हसः ।' वर्णविपयंय--वे निसक्त जिनमे वर्ण का विपर्यय होता है । यथा-- सिंद् । 'हिंनस्तीति सिंह: ।' बर्णविकार--वे निरुक्त जिनमें वर्ण में विकार उत्पन्न होता है यथा--विपाक । 'विपचन विपाक: ।' ४ वर्णनाश--वे निरुक्त जिनमें वर्ण नष्ट होते हैं। यथा--ओदन । उदत्ति तमिति ओदतम । . धात्वर्थातिशय--बे निरुक्त जो धातु के अं की विशिष्टता प्रकट करते हैं । यथा--श्रमर । “प्रमति च रौति च ज्ञमर: ।' उपर्युक्त वर्गीकरण के अतिरिक्त प्रस्तुत कोश में संग्रद्दीत निरुक्तों को खार भागों में विभक्त किया जा सकता है-- है. व्युस्पत्तिजन्य २. पारिभाषिक ल्् न्श श्र




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