बाजे पायलिया के घुंघरू | Baaje Payaliya Ke Ghungharu
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.64 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' - Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चद यह किसका सिनेमा है ? श्रौर सबसे पहले वहीं क्यो दिखाई दे ? मेने सोचा--उस शुकर भर इस विद्वानमे क्या ग्रतर है? लोक-गाथामे इस क्योका उत्तर है। गुरु द्वोणाचायने युधिष्ठिरसे कहा-- कोई दुर्जन खोज लाझ । वह सब जगह घूम झ्राया उसे कहो कोई दुजेन सिला ही नहीं। उन्होंने दुर्योधनसे कहा-- कोई सज्जन खोज लागम्ो। वह सब जगह घूम झ्राया उसे कोई सज्जन मिला ही नही। क्या बात हुई यह यही बात कि हमे अपना झ्ापा ही सब जगह दिखाई देता हैं। हममे दोष हें हमें वे सब जगह दिखाई देते है। हम उन्हे ही सब जगह देखते है इसलिए वे हममें बराबर बढ रहे है। जीवन दोप-गुणोका ताना-बाना हैं। कौन है जिसमे कमी नही--धोतीके भीतर सब नगे पर दोष ही दोप दिखाई देना पहले दोपपर ही दृष्टि जाना हमारी दृष्टिका भेगापन है। हम इस दोपसे बचे दोपोके रहते भी गुणोकों परखे प्यार करे तो पाये कि स्वय हमारे भी दोष कम हो रहे हे-- यो यच्छद्ध. स एव स.। गीता कहती है जिसकी जिसमे श्रद्धा है वह वही हो जाता है। हम गुणोकों परखे उनमे श्रद्धा रक्खे तो स्वय गुणी होते चले । १७
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