कुरान सार | Kuran Sar

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Kuran Sar by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ ] चह फिर झपनी खेहमयी माता की गोद में छाया । एक समय सती “आमना' ने छुट्स्वियों से भेंट करने के लिये बालक मुद्म्मद के साथ अपने सायके “मदीना' को प्रस्थान किया । वहाँ से लौटने पर, माग में “झव्वा' नामक स्थान पर; पितृछाया- विद्दीन वालक सुद्म्मद को; अस्ततुल्य माद-करस्पशें से भी वद्चित कर; देवी “आामना' ने स्वर्गारोहण किया । बहू और पुत्र के वियोग से खिन्न पितामद्द “अव्दुल्मतल्लव' ने; वात्सल्य- पूणण हृदय से पौत्र के पालन-पोषण का भार अपने ऊपर लिया । किन्तु भाग्य को यह स्वीकृत न था और मुहम्मद को ८ वर्ष का छोड़कर वद्द भी काल के गाल में चले गये। मरते समय उन्होंने अपने पुत्र “'अवूतालिव' को घुलाकर करुणस्वर में झादेश दिया कि माठ-पिदृ-विहीन वत्स मुद्दम्मद को पुत्र-समान जानना | महात्मा मुहम्मद ने “अवूतालिव” की प्रेमपूरों 'छभिभावकता में, कभी वन में ऊँट-वकरी चराते; तथा कभी साथियों के साथ' खेलते कूदते अपने लड़कपन को सानन्द विताया। जब बह १९ चपें के थे और उनके चथचा व्यापार के लिये वादर जानेवाले थे ; तव उन्होंने साथ चलने के लिये बहुत छात्रह किया । चचा ने मार्ग के कष्ट का ख्यालकर इसे स्वीकार न किया । जव चचा ऊँट लेकर घर से निकलने लगे; तो भतीजे ने ऊँट की नकेल पकड़ कर रोते हुए कहदा--'चचाजी, न मेरे पिता हैं न माँ । मु केले छोड़कर कहाँ जाते हो । सुके भी साथ ले चलो ।'. इस




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