मानसरोवर भाग - ३ | Mansarovar (bhag - 3)

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Mansarovar (bhag - 3) by प्रेमचंद - Premchand

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प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विश्वास रह होता है । मेरी उच शिक्षा ने गद्दिणी-जौवन से मेरे मन में घरणा पदा कर दो- मु किसी पुरुष के अधीन रहने का विचार भस्वाभाविक जान पढ़ता था । में ग्रद्दिणो की छिम्मेदारियों और चिंताओं को अपनी सानसिक स्वाधीनता के लिए विष -तुल्य समकती थी । में तर्क-चुद्धि से अपनी ख्रीत्व को मिटा देना चाइती थी में पुर्षों की भांति र्व॒त्त्र रदना चाहती थी । क्यों किसी की पाबन्द होकर रहूं १ क्यों अपनों इच्छाओं को किसी व्यक्ति के संचि में ढाल ? क्यों किसी को यह कटने का अधिकार दूं कि तुमने यहद क्यों किया वद्द क्यों किया १ दाम्पत्य मेरी निगाह में तुन््छ वस्तु थी । अपने माता-पिता पर आलोचना करनी मेरे लिए उचित नदों इदवर उन्हें सदूगति दे । उनकी राय किसी बात पर न मिलती थी पिता विद्वाद थे माता के लिए काला अक्षर मैंस बराबर था । उनमें रात दिन वाद-विचाद दोता रदता था । पिताजी ऐश्वी ख्री से दिवाइ दो जाना अपने जीवन का सबसे बढ़ा दुर्भाग्य समकते थे । चद्द यद कते कभी न थकते थे कि तुम मेरे पाँव की बेढ़ी जन गई नहीं तो में न-जाने कहीं उददकर पहुँचा दोता । उनके विचार में सारा दोष माताजी की भदिक्षा के सिर था । चदद अपनी एकमात्र पुत्री को मूर्खा माता के सस्रग से दुर रखना चाइते थे । माता कभी सुस्हें कुछ कहतीं तो पिताजी उन पर टूट पढ़ते--तुमप्ते कितनी बार रूदद चुका कि लड़की को ढाँठो मत वद्द स्वयं अपना मला-बुरा सोच सकती है तुम्दारे ढॉटने से उसके भात्म-प्म्मान को कितना घक्का लगेगा यदद तुम नहीं जान सकतीं । आखिर माताजी ने निराश द्दोकर मु मेरे दाल पर छोढ़ दिया और कदाचिद इसी शोक में बसीं । अपने घर की अशान्ति देखदर मुझे विवाद से भर भी इणा हो गई । सनसे बढ़ा असर मुस्न पर मेरे काढेज की लेढी प्रिंसपपल का हुआ जो स्वय अविवादिता थीं । मेरा तो भब यद्द विचार है कि युवर्कों की शिक्ष का भार केवल आददं चरित्रों पर रखना चाहिए । विलास में रत शौक़ोन कालेजों के प्रोफेसर विद्यार्थियों पर कोई अच्छा असर नहीं ढाल सकते । में इस वक्त ऐसी बातें आपसे कद रददो हूँ पर अभी धर जाकर यदद सब भूल जाऊं गो । में जिस ससार में हूँ उसका जलवायु दो दषित है। वहाँ सभी मुमे कोचढ़ में लतपत देखना चाइते हैं मेरे विलासासकत रहने में दी उनका स्वाथ है । भाप वदद पढ़ले आदमों हैं जिसने मुम्ड पर विस्वास किया है ह नस सुकसे चिष्कपट व्यवद्दार किया है । ईस्वर के लिए अब मुस्ते भूल न जाइएगा । आपटे ने मिस्र ज्ञोशो की भोर वेदनाएण दृष्टि से देखकर कुद्दा--अगर




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