डिंगल में वीर रस | Dingal Me Veer Ras

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Dingal Me Veer Ras by मोतीलाल मेनरिया - Motilal Menriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७ ) है ।?- डिंगल शब्द रूढ़ प्रतीत होता है । डिगल शब्द का मूलभूत घाठ इंगि गत्यथक है स्वर्गीय ठाकुर किशार सिंह जी वारहठ ने डिंगल शब्द की उत्पत्ति सस्कृत के डीड? घाहु से मानी है। बाबू श्यामलुन्दर दास जी का. कहना है कि जो लाग ब्रजभाषा में कविता करते थे उनकी भाषा पिंगल कहलाती थी और उससे मेद करने के लिये मारवाडी भाषा का उसी की ध्वनि पर गढा हुभ्रा डिंगल नाम पड़ा । इसी तरह दो-एक श्और साहित्य-ऐतिहासिकों ने भी इस विपय पर श्रपने विचार प्रकट किये हैं । पर चास्तविक्र तथ्य पर पहुँचने मे सहायता उनसे भी नहीं मिलती श्रौर इसलिये इस विष्रय में श्रच अधिक कुछ कहना बूथा है । लेकिन वात है बहुत साधारण । सभी मानते हैं कि प्रारभ मे डिगल एक तरह से चारण-भाटो ही की भाषा थी और अपनी काव्य-रचनाएँ ये लोग त्रुहुधा इसी भाषा में किया करते थे। इसके साथ ही साथ यह भी सभी पर विदित है कि झ्रपने दाश्रय दाताओओ के कार्य-कलापों का उनके शौर्य-पराक्रम का ये लाग बहुत बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किया करते थेरे | घन के लाभ से कायर को शूर कुरूप को सुन्दर मूख॑ को पडित और कृपण को दानी कह देना इनके लिये एक साधारण बात थी । सत्या- सत्य के यथार्थ निरूपण॒ की अपेक्षा हाँ हुजूरी द्वारा आपने स्वामियों को खुश करके उनसे श्रपना स्वार्थ साधने की श्रोर इनका ध्यान विशेष रहता था । कारण कविता उनकी जीविका हो तो ठहरी झ्रतएव उनके वन श्धिकाश मे आत्युक्ति पूर्ण हुआ करते थे | अर्थात्‌ वे डीग हॉका करते थे। इसलिये जो भाषा दस प्रकार डीग हॉकने के काम से लाई जाती थी उसका शीतल श्यामल आदि शब्दों के श्नुकरण पर लेागोने समवत. .श्रोताद्यां ने डडीगल ( डीग से युक्त ) नाम रख दिया जिसका १ एकदश हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन का विवरण भाग दूसरा प्रू० १७ हद _ हम २ 10. प6 शाघ्ू्टण110 पृष्6 0६ ५5 0 2 (पका व श्लफ फिट धर ४. छाए लिए 85 1 ९ 85. इहढाए फरा फणते एप्प 2 पा8छु015 17 छ 81855). एटाए डी पाडीं। 9९८०0ा065. 3. पघ118 90818 09 धए्हाए घट ि्ाए है 8. .व्ॉद्ि हटाएं फ़ाधापएा 2 हशण फ० छापा कुंड शावाड पुकषिणतेड फिट 5 ः पड हद. हि. प८51७011




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