प्राकृतिक विज्ञान | Prakrtik Vigyan

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Prakrtik Vigyan by पी. आचार्य - P. Aacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ं गयी । क्योंकि नित्यके अबुभवाकी कृपासे नित्य नयी वाते हृदयमें स्थान लेतीं हैं । अतः यदि अनेक प्रेसवालों तथा अन्य मददाशयोंकी कुटिल नीतिसे श्राकृत्तिक विज्ञान के मुद्रणसे इतना विलम्व न होता तो जिस रूपमें आज पाठकोंके द्वायमे प्राकृ- तिक विज्ञान है उस दशामें नयनगोंचर न होता । अतः दम उन समस्त मददाश- योंको हार्दिक वन्यवाद देते हैं जिन्होंने प्राकृतिक विज्ञान- के प्रकाशनके मार्ग में कण्टकका काम किया है । क्योंकि यद्यपि उनकी कृपासे दम घनद्दीन अवश्य हो गये किन्तु अधिक समयके व्यतीत होनेसे हमारे अजुभवमे दिनॉदिन वृद्धि दोती चली गयी जिससे प्राकृतिक विज्ञान अविक उपयोगी हो गया । अतएव दम इसीसे सन्दु्र हैं। अब हम अधिक न लिखकर केवल इतनाही कथन करना यथेष्ट सम- झते हैं कि दिल्लीके वैभव आदि तथा अन्य स्थानेंकिं प्रेसोंकी इसी देतु अवैतनिक सेवा करनेपर कि. किसी. प्रकार प्राकृतिक विज्ञान- ? का सुन्दर मुद्रण हो जावे और कई मित्रो एवं सम्बन्धियों द्वारा इपयेका नादा या समयपर श्राप्त न होने और अनेक सम्पत्ति शालियोंसे घन प्राप्त ोनेके स्थानमें उनके हेतु समयका नाश द्वोनेके अतिरिक्त गांठके घनसे- भी हाथ घो वैठनेके कारण हम पूर्ण रुपेण दुखी दो गये थे अनायास आक्टोवर सन्‌ १९२३ ईं० में अन्थेरीके स्थानपर एक रात्रिको जिस वज्लेमें दम ठह्े हुए ये उसके मालीको निमोनिया हो गया और सेठ करोड़ी मल मालिक फम्मे छोठे लाल दुजैनमल हमसे उसकी चिकित्सा करायी और दमारे द्वारा उसको लाभ होनेसें उन्होंने हमारे निमित्त प्राकृतिक विज्ञान के हीन्दी एवं इड्टलिश सरकरणके मुद्रणादिका समस्त भार इस शर्तपर अपने ऊपर ले लिया कि उसके स्थानमें हम उनके आत्मजॉंकी चिकित्सा करके उन्हें लाभ पहुंचायें और यद्द बात निश्चय हो जानेपर दूसरेद्दी दिन उन्होंने वाम्वे वैभव प्रेस सुम्पईको दो सौ रुपयेका चेक प्राकृतिक विज्ञानके हिन्दी सर्करणके मुद्रणाय एडवान्समे मेज दिया ॥ इसमें कोई सन्देह नहीं कि सेठ करोड़ी मछजीने हमारे निमित्त प्राकृतिक विज्ञानका मुद्रण कराके हमपरही नहीं वरन्‌ समस्त ससारपर उपकार किया हे और इसके लिए हम आजन्म उनके ऋणी रहेगे । परन्तु यह खेदकी बात है कि वदद स्वाथ॑ निकल जानेपर अथीत्‌ उनके अनेक रोगियोंको हमारे द्वारा लाभ हो जाने और प्राकृतिक चिकित्सा विधि हाथ आजानेपर अब वदभी -आख दिखाते हुए ृष्टि गोचर होते हैं। अतः हमको यही कहना पढ़ता है -




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