संस्कृत का भाषा शास्त्रीय अध्ययन | Sanskrit Ka Bhasha Shastriya Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घ्रामुख वेज्ञानिक श्रात्तिकों जन्म देते है । इन सब्य मंपशरख्रियाके भतानुसार सब्घ पछोक्षा0ए मापाओओंपे न होकर मापाश्योकी सघटना उप धिए0 1 में पाया जाता है। इसलिए सबंध मापाओओंका नहीं उनकी सघदनाका हैं | फेछीकणणाडीए] 15 00. एप 1िए8छए865 0 एं. 58005] यह कहना ज्यादा ठीक होंगा । साथ ही किन्टीं दो सापाओं मै परस्पर सम्बन्ध है या नहीं इसकी अपेक्ता द्धिक सर्वंघ है अथवा कम संवध है इस वातकों मानना अधिक सगत है । उदाहस्णके लिए. खड़ी बोली दिदी | तथा राजस्थानीकी संघटनामें परस्पर इतना घनिष्ट सबंध है कि हम यह कह वैठते हैं दोनो एक दूसरेसे घनि्र सबघ रखती हैं । इसी तरह राज- स्थानी तथा रुजरातीकी सघटना परस्पर अधिक स वृद्ध है जव कि राजस्थानी तथा पजावोकी सघटना कम संबद्ध है तथा राजस्थानी त्रौर बगालीकी समटना एक दूसरेसे बहुत कम सबद्ध है । श्रतः भापाविजञानसे तुलनात्मक पद्धतिका श्रध्ययन करते समय इस चातकों कभी नहीं भूलना होगा कि सच्घ मुख्यतः भापाद्योकी संघटनाका होता है । तुलनात्मक अर व्ययन दो या अधिक मापाओओकों ले कर किया जा सकता है | इस तरह का अध्ययन कोरा विवर्णात्पक भी हो सकता है । हिंदी तथा श्रग- -रेजीकी सघटमाके यथास्थित रूपकों लेकर तुलनात्मक इृष्रिसि लिखे गये व्याकरण इस त्तरदकी पद़ति पाई जा सकती है । किन्तु तुलनात्मक अध्य- यनम प्राय ऐतिहासिक दृष्रिसे परस्पर संबद्ध भापाओका तुलनात्मक अर व्ययन किया जाता है । यद्द एक ही भापाके परवर्ती रूपोके साथ तुलनात्मक इृष्टिसे किया गया दो या झ्नेकोंके साथ । सस्कृत प्राकृत तथा अपगभ्रशका तुल- नार्मक अध्ययन एक टगका होगा सस्कृत शरीक तथा लैंतिनका दूसरे टग का । ऐतिहासिक क्रतकों व्यानमें रखते हुए एक साथ कई सापायोकी विकसित दशाका भी तुलनारमक आर व्ययन किया जाता दे | जहाँ तक मापाश्य्रोके श्राजके रूपका प्रश्न है उनका कथ्य 8फण८60० रूप ही अपनाना ठोक होगा पुरातन रूपोके लिए प्राचीन साहित्यकी शरण लेनी पड़ती




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