मालवीयजी के लेख | Malaviyaji Ke Lekh

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Malaviyaji Ke Lekh by पद्म कान्त मालवीय - Padm Kant Malaviya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग जयतु विदवविद्यालय कादी मातु गंग पय जाहि. पियावत सुल धम सुखराशी । पालत विश्वनाथ विद्या-गुरु दंकर श्रज शभ्रविनादी ॥ ज्ञान-विज्ञान प्रकादी गंग जमुन संगम विच देवी गुप्त रहो चपला सी । ईस-कृपा तें सोई सरस्वति वाराणसी प्रकाशी ॥ तिमिर-श्रज्ञान-विनादी ऋषि-मसुनि संग नृपमंडल सोहत उच्छव परम हुलासी । देत श्रसीस फलहू श्ररू फूलहू सब विधि भारतवासी ॥। लहहु विद्या-धन-रादी (८ जुलाई १९६१६) विश्वविद्यालय तो बन गया पर वह भी तो उस उद्देश्य-विज्षेप की प्राप्ति के लिए एक निमित्त-मात्र था जिस उद्देश्य से अभ्युदय का प्रकाशन प्रयाग के उस तपःपुत्त ब्राह्मण ने किया था--झर्थात्‌ भारतवर्ष के गौरव का पुनःस्थापन । विश्वविद्यालय की स्थापना-मात्र से तो वह उद्देद्य पूरा होने वाला नहीं था । श्रौर फिर मसालवीयजी के सपने भी तो महान्‌ थे । ग्रम्युदय के प्रथम श्रंक के मुख्य लेख में ही उन्होंने कह दिया था-- हमारी अ्रभिलाषा मन्द नहीं है । पृथ्वी-मंडल पर जितने पवत हैं उनमें सबसे ऊँचा नगाधिराज हिमालय है । उसका सबसे ऊँचा धवल दिखर पृथ्वी के सब पवतों की धवल चोटियों के ऊपर श्राकाश को शोभित करता है । हमारी प्राथना श्रौर श्रभिलाषा है श्रौर परमेदवर उसको पुरी करेगा कि हमारे देश का भ्रम्युदय पृथ्वी के किसी श्रौर देश के भ्रम्युदय से किसी श्रंश में कम न रहे वरन्‌ चढ़ा-बढ़ा रहे जैसे कि हिमगिरि के दिखर श्रन्य पर्वतों के शिखरों से चढे-बढ़े हैं । ऐसे महान्‌ व्यक्ति के ऐसे महान्‌ सपने केवल विश्वविद्यालय की स्थापना- मात्र से तो पूरे होने के नहीं थे । उस महात्मा का तो नारा था-- सबको रोटी सबको काज । श्रपने देश में श्रपना राज 1 जो श्राज सारे देश का नारा बना हुम्रा है। उनकी अ्रभिलाषा श्र प्राथ॑ना तो थी ही उन्हें पूर्ण विश्वास था कि परमेश्वर उसे पुरा भी करेगा कि उनके देश का श्रम्युदय पृथ्वी के किसी श्ौर देश के भ्रम्युदय से किसी श्रंश में कम न रहे वरनू चढ़ा-बढ़ा ही रहे भ्ौर श्राज यहीं सारे देशनिवासियों की झभिलाषा गौर प्राथेना है । इस भ्रभिलाषा को पूर्ण करने में ऐसी महान्‌ श्रभिलाषा रखने वाले महात्मा के ये लेख सहायक होंगे ऐसा मेरा विश्वास है। कम से कम इनसे




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