चिन्तन के क्षणों में | Chintan Ke Kshano Me
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.05 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्नेद श्शू ही है तो बदद उधार सुखदायी उसी समय हो सकता है जब तुम अपने आपको घीत स्नेह और प्रेम करने लो ) ६६. यह किसे नहीं मालूम हिं पंजाबी माताएँ जब अपने बच्चे को प्यार करने उगती हैं तो उनके मुँ ह से शब्द निकटने छगते हैं-- तू मुझे इतना प्यारा है कि जी चाहता है तुझे खा जाऊँ । और यह वाक्य पंजाबी समाज में वर्जित होना तो एक जोर आदर के साथ छुना जाता है और माँ की म्रतिछा बढ़ाने में सहायक होता है । ६७. प्रेम का चोटी पर पहुँचना मूर्खता की हृद कर देसा है। ६८. प्रेम को नेमरहित कहकर तो कहनेवाले ने कमारु ही कर दिया | नेम-रहित एक ही और चीन है और वह हे उड़ाई । इसछिए ठड़ाई और प्रेम एक कोटि में आ जाते हैं । ६०. समान को अगर मूर्खता से मरे इृदब देखने में आनन्द थाता होता तो प्रेम शायद इतनी म्रतिष्ठा न पा सकता कि जितनी बह पाये हुए है । ७०. अगर हम यह कह दें कि प्रेम और मूर्खता एकार्थ- बाची शब्द हैं तो पाठकों को हम पर विगढ़ने का हक नहीं । क्योंकि किसने प्रेम की क्रियाएँ मूर्खता से भरी नहीं देखीं ? ७१. औरतें जितने गीत गाती हैं वे दुःखभरे होते हैं और उस दुख का कारण होता हे प्रीतम याने श्रीत का पात्र । ७२. आखिर यह प्रेम याने दुमखदाबी प्रेम इस संसार में
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