चिन्तन के क्षणों में | Chintan Ke Kshano Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्नेद श्शू ही है तो बदद उधार सुखदायी उसी समय हो सकता है जब तुम अपने आपको घीत स्नेह और प्रेम करने लो ) ६६. यह किसे नहीं मालूम हिं पंजाबी माताएँ जब अपने बच्चे को प्यार करने उगती हैं तो उनके मुँ ह से शब्द निकटने छगते हैं-- तू मुझे इतना प्यारा है कि जी चाहता है तुझे खा जाऊँ । और यह वाक्य पंजाबी समाज में वर्जित होना तो एक जोर आदर के साथ छुना जाता है और माँ की म्रतिछा बढ़ाने में सहायक होता है । ६७. प्रेम का चोटी पर पहुँचना मूर्खता की हृद कर देसा है। ६८. प्रेम को नेमरहित कहकर तो कहनेवाले ने कमारु ही कर दिया | नेम-रहित एक ही और चीन है और वह हे उड़ाई । इसछिए ठड़ाई और प्रेम एक कोटि में आ जाते हैं । ६०. समान को अगर मूर्खता से मरे इृदब देखने में आनन्द थाता होता तो प्रेम शायद इतनी म्रतिष्ठा न पा सकता कि जितनी बह पाये हुए है । ७०. अगर हम यह कह दें कि प्रेम और मूर्खता एकार्थ- बाची शब्द हैं तो पाठकों को हम पर विगढ़ने का हक नहीं । क्योंकि किसने प्रेम की क्रियाएँ मूर्खता से भरी नहीं देखीं ? ७१. औरतें जितने गीत गाती हैं वे दुःखभरे होते हैं और उस दुख का कारण होता हे प्रीतम याने श्रीत का पात्र । ७२. आखिर यह प्रेम याने दुमखदाबी प्रेम इस संसार में




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