तमिळ साहित्य | Tamil Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.54 MB
कुल पष्ठ :
213
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)11 में हमारे देश की जन-संख्या बहुत बड़ी है किन्तु हम उन देशों के मोलिक विचारकों को संख्या को देखें तो हम प्रायः अज्ञ और श्रनपढ़ ही कहलाएंगे क्योंकि हमारी शिक्षा एक विदेशी भाषा के माध्यम से होती है और हम उसी विदेशी भाषा में सोचते हैं । मोलिक कार्य के लिए यह आवश्यक है कि हम आजादी से और अपने हो ढंग से सोचें और यह स्वाभाविक वातावरण मे हो हो सकता है और इसीलिए साठ- भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना आवश्यक है। दुर्भाग्य से हमारे देवा की वस्तुस्थिति क्ञायद ही इस उद्देश्य की पति की ओर ल॑ जाने- वाली हो । अत इस बात को हमारे राष्ट्रीय नेताओं को अपने ध्यान में रखना चाहिए श्रौर यह परिवतंन चाहे कितना ही कठिन हो करना ही चाहिए । हाँ यह हो सकता है कि आवश्यकता के अनुसार वह धीरे- धीरे किया जाए । यदि हम चाहते हैं कि भारतीय भाषाओं में उदाहरणा्थ तमिठ् में उत्तम कोटि का बेज्ञानिक और तकनीकी वाइमय तैयार हो तो जब तक कि विचार स्पष्टता से और अच्छी तरह प्रकट न किये जाए यह काम आसान नहीं होगा और दूसरों भाषाओं को पुस्तकों के अनुवाद मात्र से काम नहीं चलेगा । जापान में अनेक नवयुवक वज्ञानिक हैं जिन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की ऊंची योग्यता प्राप्त की है और वहाँ शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी नहीं था । इन लोगों ने अपनों मातृभाषा जापानी में हो शिक्षा पायी थी । तब हमें गम्भीरता से इसपर विचार करना चाहिए कि हम वर्तमान परिस्थिति में यह स्तर किस तरह प्राप्त कर सकते हैं । हमें याद रखना चाहिए कि महात्मा गान्धी ने इस सम्बन्ध मे कहा था-- परमात्मा के नाम पर मातृभाषा का. आश्रय लो नहीं तो हम कुछ भी नहों कर सकेंगे । और एक बात है हमारे देश में साक्षरता तेजी से बढ़ रहो है और यदि हम अपने देश का विकास जनतान्त्रिक और समाजवादी ढंग पर करना चाहते हैं तो हमे ज्ञान को सबके लिए सुलभ बनाना चाहिए
User Reviews
No Reviews | Add Yours...