अभिधर्म कोश भाग - ४ | Abhidharm Kosh Part-4

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आचार्य नरेन्द्र देव जी - Aacharya Narendra Dev Ji

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वसुबन्धु - vasubandhu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सातवाँ कोशस्थान ११ इसलिए १० ज्ञान हैं धर्म अन्वय लोकसंदति परचित्त दुःख समुदय निरोध मागें क्षय अनुत्याद । इनका अन्योन्य संग्रह केसे दै । १. संदति ज्ञान एक ज्ञान अर्वात्‌ संदति ज्ञान और एक दूसरे ज्ञान का एक भाग अर्थात्‌ परचित्त ज्ञान का सात्रव भाग] है ।5 १२३ २. धर्मेज्ञान एक ज्ञन और सात ज्ञानों का एक भाग अर्थात्‌ कामधातु के दुःख समुदय निरोध मागें परचिन क्षण श्र अनुत्याद ज्ञान का एक भाग] है ३ अन्वय ज्ञान--अन्वय ज्ञान और इन्हीं दुःख ज्ञानादि 3 का एक भाग अन्वय- ज्ञान भाग । यह भाग कामधातु का न होकर दो ऊध्वंघातुओं का है । ४. दुःख ज्ञान एक ज्ञान और ४ ज्ञानों का एक भाग है अर्थात्‌ धर्म अस्वय क्षय ओर अनुत्पाद ज्ञान का एक भाग जिसका आलम्बन दुःख सत्य है | श-६. इसी प्रकार समुदय और निरोध ज्ञान को भी जानना चाहिए ॥ ७. मार्गज्ञान एक ज्ञान (मार्गज्ञान) और पाँच ज्ञानों का एक भाग है घर्में अन्वय क्षय अनुत्याद और परचित्त ज्ञान का एक भाग । ८. परचित्त ज्ञान एक ज्ञान (परचित्त ज्ञान) और चार ज्ञानों का एक भाग है धर्म अन्वय मां संदृति ज्ञान का एक भाग ॥ ई. क्षय ज्ञान एक जान क्षयजान) और ६ ज्ञानों का एक भाग है धर्म अन्वय दुःख समुदय निरोघ मागें ज्ञान का एक भाग 1 १०. अनुत्पाद ज्ञान इसी प्रकार | ज्ञान जिनकी संख्या दो हैं (अनास्रव और सात्रव) 1५० जञानों में कैसे विभक्त हैं ? स्वभाव... प्रतिपक्षाश्यामाका राकारगयोचरात्‌ । प्रयोग छृतकृत्यत्व हेतुपचयतों दश ॥८।1 सिकमफासवसनशलगतगतालयरलिरगगपणपनलतिकशयतगसतवरसकालरतकाग .पननपपपसरगरपरफासमयधदामंमवेतरशधा ध०...-थ पमालवमत या कममम्थथथम्कर सिनन है । (ऊपर देखिए पु० ४ टि० १) सहाव्युत्यत्ति ५८० का क्रम सो शिन्‍न है । २. परमार्थ और मुलग्रन्थ में यह प्रश्न नहीं दिया है। मूल में तत्नाा हैन्त दुन ज्ञारनों र्झ संबति जान है ३. व्याख्या संवृतिज्ञान॑ संवतिज्ञानमेव स्वभाव संग्रहत । एकस्य च परचित्त केश पु पूछ) । ४. बह भाग जिसका माकार ज्ञान इप लक्षण का है मुख्से दुःख परिज्ञात हुआ है का के के. की मैं बी श् पं है




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