मानस के तत्सम शब्द | Manas Ke Tatsam Shabd

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) एक दिन शोधग्रंथ को हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रयाग को प्रकाशनार्थ भेजा गया । तब प्रो० उमाशंकर शुक्ल एकेडेमी के सचिव थे । बाद में प्रो० जगदीश गुप्त (अध्यक्ष हिन्दी विभाग इलाहाबाह विश्वविद्यालय) एकेडेमी के सचिव नियुक्त हुए । उनसे मैंने ग्रन्थ के महत्व पर पत्र-व्यवहार भी किया था । उनके निदिष्ट संकेतों को मानते हुए मूल शोधग्रंथ में से फिर एक अलग कोश तैयार किया गया । प्रस्तुत प्रकाशित ग्रन्थ (मानस के तत्सम शब्द) उसी रूप में है जिसके लिए प्रो० जगदीश गुप्त ने अपना सुझाव दिया था । इसकी मुझे प्रसन्नता है कि उनका स्नेह इस ग्रन्थ में साकार हुआ है । उस पद्धति से यह ग्रन्थ छोटा लेकिन महत्वपूर्ण और उपयोगी बन गया है । प्रस्तुत ग्रन्थ से रामचरितमानस के तत्सम शब्दों का अध्ययन प्रामाणिक सन्दर्भ के साथ किया जा सकता है । डॉ० गयाप्रसाद शर्मा को इस नयी कृति को नये ढंग से तैयार करने में एक बार पुनः घोर परिश्रम करना पड़ा । उनकी यह सारस्वत साधना हिदी-जगत्‌ में समादुत होगी -- ऐसा मेरे सारस्वत मन का ध्रुव विश्वास है । मैं माता वीणापाणि से प्रार्थना करता हूँ कि मेरे प्रिय शिष्य गयाप्रसाद शर्मा इस सोपान-पथ से और भी दिव्य सारस्वत लोकों के दर्शन करें । उनकी शब्द-साधना निरन्तर वृद्धिगत सुषमा को प्राप्त होती रहे मंगलायतनं हरिः परितोष अस्वाप्रसाद सुमन ए-८७ चिवेकनगर (आवास विकास कालोनी) . दिल्‍ली रोड सहारनपुर--२४७००० (उ ० प्रू० फ)




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