विज्ञानं प्रयाग का मुख पत्र भाग - ३१ | Vigyan Prayag Ka Mukh Patra Bhag - 31

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डॉ. सत्यप्रकाश - Dr Satyaprakash

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ब्रजराज - Brajraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ विज्ञान दि अं आय थ छोटा सिर हाथीका बड़ा भारी सिर और उसकी बड़ी भारी और चौड़ी गदन उपयुक्त विचारोंकी खत्यता स्पष्ट करनेके लिये काफी दूष्टान्त हैं । कुछ पेड़ छोटे हैं तर कुछ उँचे और सीधे बढ़ते हुए चले जाते हैं कुछ सब ओर फैलते हैं इस प्रकार वृक्षौके बहुतसे भेद हैं। परन्तु जो पेड़ नारियल आर ताड़के समान ऊंचे बढ़तेही चलेजाते हैं उनका गठन नियम पूर्वक ही होता रहता है । ये पेड़ यद्यपि बहुत ऊंचे बढ़ते हैं तो भी उनकी ऊंचाई की एक मय्यांदा होती है यह बात बहुत कम लोगों को मालूम होगी । ब्रुक्षाकी तौल उसके तनेके ऊपर निभंर होती है श्र उसकी मज़बूती उसके क्षेत्रफल पर । पेड़के वज़नके अनुसार उसकी मज़बूती कम- अधिक करनेके लिये उसी तरहका तना बनाया ज्ञांता है। जहाँ एक बार तनेकी चोड़ायी स्थिर होगई उसकी तोल और ऊंचाई भी स्थिर हो ज्ञाती है। बोभ के कारण बृक्त के नम जानेकी शंका रहती है। यदि कमज़ोर लकड़ी पर हम ज़ोर दें तो वह नम जाती है पर टूटती नहीं । यही वृद्तों के विषयम भी होता है। उनकी ऊंचाईके विषय में भी यहदी बात है। यदि तनेकी चौड़ाई ठीक न होगी तो वह वृक्के बोककको स संभाल सकेगा और बुड्ढे श्रादमीके समान झुक जावेगा। तने की चौड़ाई ११ इंच हो तो वह पेड़ ३०० फुट तक बढ़ सकता हे यह हिसाब लगाकर दिखा दिया गया है। सष्टिमें भी ऐसी ही बात है। यदि हम इक्कीस इंच चौड़ाईका अर्थात्‌ पांच साढ़े पांच फुट घेरेका ३०० फुट ऊँचाईका खंभा खड़ा करना चाहें तो मुश्किल है | इतना ऊंचा करनेके लिये खंभों की पेटी कुछ अधिक मोटी रखनी होगी श्र वृक्त भाग ३१ जितना ऊंचा होता जावे उसकी मोटाई उत्तरोत्तर कम होती जानी चाहिये। १००० फुट ऊंचाईकी ड्फेल मीनारकी रचना इसी सिद्धान्तके अनुसार की गई है और सष्टिमें भी गगनचुम्बी पेड़ॉकी रचना ऐसी ही पाई जाती है । जिस नियमके अनुसार इफेलमीनार कम होती जाती है उसी नियमके अनुसार जो वक्र रेखा निर्धारित की जाती है उसे लघुरिक्थ वक्र कहते हैं। पेड़ भो इसी वक्_र रेखाके अनुसार कम होते जाने जाहिये । केवल शंकुके समान कम होते जानेसे काम नहीं चलेगा । ऊचाइके कारण तने पर पड़नेवाले बोकके संभालनेके लिये जिस प्रकार योजना की जाती है उसी प्रकार वायु पानी और शीतसे सुरक्षित रहने के लिये भी ध्यान दिया जाता है। यह बहुधा देखा जाता है कि अधिक वर्षा होते समय बड़े पेड़ तो ट्रट जाते हैं पर लतायें वैसी ही रहती हैं उन्हें अधिक क्षति नहीं हीती है ।




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