भौतिक विज्ञान भाग 1 कक्षा 11-12 | Bhotik Vigyan Bhag 1 Kaksha 11-12

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Bhotik Vigyan Bhag 1 Kaksha 11-12 by प्रो. बी. रामचन्द्र राव - Prof. B. Ramchandra Rao

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हु तालिका 3 मीदिक उपसभ्स उपसग संक्षेप ज्थ उदाहरण टेग्प पृ ५ 1072 शिशा भू 10% मेगा 0 10 . मेगाटतस्न 10 टन कली फू 10९. 1 किलोमीटर 10 मी डसी पं ए 1071 सेंटी 0 ८107 1 सेंटीमीटर 10 सभी मिली पा ५ 107 1 मिली एंपीयर न 1076 माइक्रो ( 107 1 माइक्रोवोल्टन् 106४ नेशो दर 1078१ | नेनों सेकण्ड 10 से पिकों .. 0 18 ह पिंकी फराडस्ट 1 पा 12 पर फेम्टो ह 10715 ऐटो . 8. ५1078 ला नयाय् अगििफनननीीणतणयस्‍एएल्‍एएटतयएतल्‍ए।।िककलफकलटलकअवआाणायतल्‍स्‍एसतएतजररआशटरटरशवेकरसचलल की नोट ये उपसभ्भ किसी भी भालक के गुणक और दाश- मिक मंश के लिए लगाए जा संकते हैं चाहे वह मात्क मीटिंक पद्धति का हो या न हो । संहति (58) प्रामाणिक किलोग्रामम सेब्रे स्थित माप और तोल के अन्तर्राष्ट्रीय ब्यूरो में रखा हुआ अन्त- राष्ट्रीय भादि रूप किलोप्राम है। यह समान ऊँचाई और व्यास का एक सिलिडर है जो 90 प्रतिशत प्लैटिनम तथा 10 प्रतिशत इंरिडियम की मिश्रधातु का बना हुआ है।इसे सन्‌ 1880 ई०में मानक के रूप में स्थापित किया गया था । एक ग्राम 1073 किलोग्राम तथा मीट्रिक टन 0 किलोग्राम होता है।सन्‌ 791में फ़रॉँस में जब मीट्रिक पद्धति अपनाई गई थी तब यह विचार था कि ग्राम 470 पर शुद्ध जल के एक घन सेंटीमीटर की संहति को कहा भौतिकी विज्ञान जाएगा । अधिक परिशुद्ध मापों द्वारा ज्ञात हुआ कि वह यथार्थ में इतना नहीं है । तथापि आदि रूप किलोग्राम को ही प्रामाणिक मानते हैं । न्िदिश पद्धति में प्रचलित पाउण्ड और गज जो क्रमश संहति और लम्बाई के मात्क है अब मानक किलोग्राम और मीटर से संबद्ध कर दिए गए हैं और इस प्रकार 1 मानक एवाइपाइज पाउप्डस्‍् 0.4535924277 किलोग्राम और 1 मानक गज न्न0.9144 मीटर । संहतियों की तुलना सामान्य तुला से की जाती है । अध्याय 2 में हम पढ़ेगे कि संहति पदाथ के एक गुण का परिमाण है जिसे जड़त्व कहते हैं । कमानीदार तुला से हम पदार्थ की संहत्ति नही अपितु उसकी भार मापते हैं । भार उस पदाथ पर लगने बाला गुरुत्व जनित बल होता है। संहति और भार के भेद को भली प्रकार समझ लेना चाहिए और इस विषय में कोई संभ्रान्ति तह्टी रहनी चाहिए । काल (1016 ) एक दित के मध्यान्ह से दूसरे दिन के मध्यान्ह तक . के काल को दिन कहते हैं । यह उतचा काल है जितने में पृथ्वी अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा कर लेती है। दिन को 24 घंटों में प्रत्येक घण्टे को 60 मिनटों और प्रत्येक मिनट को 60 सेकण्डों में विभाजित किया गया है। इस प्रकार सेकण्ड दिन का 1/86400वाँ अंश है । क्योंकि दिन का परिभाण वर्ष में सदा एक समान नहीं रहता उसमें घट-बढ़ होती रहती है अतः एक. (माध्य सौर) सेकण्ड को माध्य सौर दिन के 1/86400वें अंश के बराबर निर्धारित किया गया है । सेकण्ड काल का मात्रक है। काल का यह मात्रक सभी पद्धतियों में समान है । पृथ्वी के अपनी धुरी के गिर्द धृणंन में कुछ अनियमितताएं आ जाती हैं । इसी प्रकार वर्षे के परिमाण में भी कुछ अन्तर आ जाता है । यद्यपि यह्ठ अन्तर थोड़ा ही होता है । 1956 में माप भौर तोल के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन मैं वेशञानिक कार्यों के लिए अत्यन्त उच्च कोटि की यथार्थ॑ता को ध्यान में रखते हुए सेकण्ड की फिर से व्याख्या की गई । इसका आधार पृथ्वी का अपनी कक्षा पर परिभ्रमण बेंनाया गया । इस व्याख्या के असुसार सेकंड को सायन . 1 प्रामाणिक किलोग्राम और प्रामाणिक मीटर के प्रतिरूप राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला नई दिल्‍ली में रखे हैं ।




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