विज्ञानपत्रिका | Vigyan Patrika
श्रेणी : पत्रिका / Magazine, विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.62 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रो. हीरालाल निगम - Prof. Hiralal Nigam
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बछ डॉ० हीरालाल निगम सम्मान अंक काम छह साल में होता था वह छह महीने में होने लगा है| -आपकों किस प्रकार का आम चाहिए ? आपको किस प्रकार का टमाटर चाहिए ? यानी उनका रंग कैसा हो स्वाद कैसा हो आकार कैसा हो ? यह बिल्कुल निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अब यह संभव है कि हम वैसे फल उत्पन्न कर सकें। मैं हिमाचल प्रदेश में था। हिमाचल प्रदेश सेब का प्रदेश है। वहाँ सेब के ऊपर खूब अनुसंधान होता था मैंने वहाँ सेब की नई प्रजातियाँ देखीं । इसमें खटास चाहिए कि मिठास चाहिए जो आपको चाहिए उस प्रकार की प्रजाति के सेब उत्पन्न हो सकते हैं । यह मैंने अपनी आँखों से देखा है। अगर मैं अपनी आँखों से देखकर नहीं आता तो आपके सामने कहने की स्थिति में न होता कि सेब के एक ही पेड़ में आठ प्रकार के सेब लटकते हुए मैंने इन्हीं आँखों से देखे हैं। पेड़ एक है लेकिन उसमें रंग-रूप में अलग-अलग आठ प्रकार के सेब मैंने एक साथ एक डाल में एक प्रकार का दूसरी डाल में दूसरी- प्रकार का और तीसरी डाल में तीसरी प्रकार का सेब देखा है| हमारी आबादी आज एक अरब हो गई है। एक अरब की आबादी को खिलाने की सम्भावना जैव प्रौद्योगिकीकरण के कारण संभव हो गई है। हम लोग कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन कर सकते हैं कम समय में अधिक उत्पादन कर सकते हैं । विज्ञान की महिमा से यह एक द्वार खुल गया है विराट परिवर्तन का। जो काम पहले हम अनुमान के आधार पर करते रहे हैं वह हम अब निश्चयपूर्वक कर सकते हैं | जैव प्रौद्योगिकी मानती है कि 99.9 प्रतिशत हम सब समान हैं । हमारे रंग रूप में आकार-प्रकार का जो परिवर्तन आ जाता है यह थोड़ा सा ही डी.एन.ए. इधर से उधर करने से हो सकता है। इसलिए अच्छे मनुष्य की अच्छी प्रजाति उत्पन्न की जा सकती है| खतरा यह है कि गलत ढंग से लोगों को भी पैदा किया जा सकता है। कोई भी काम मनुष्य का ऐसा नहीं है जो कि केवल अच्छा हो जिसमें केवल भलाई हो बुराई की आशंकाएँ भी रहती हैं। हमारे पुराणों के अनुसार चौरासी लाख योनियाँ मानी जाती हैं। इनमें तिरासी लाख निन््यानबे हजार नौ सौ निन््यान्बे योनियाँ प्रकृति के द्वारा शासित हैं । आज से दस हजार साल पहले पशु-पक्षी जीव-जन्तु जैसे थे आज भी वैसे ही हैं क्योंकि वे सब प्रकृति के द्वारा शासित हैं । अकेली मानव योनि ऐसी है जो प्रकृति के नियंत्रण का अतिक्रमण कर सकती है अच्छाई की दिशा में भी करती है और बुराई की दिशा में भी। आपको एक भी पशु ऐसा नहीं मिलेगा जो कालाबाजारी करता हो एक भी पशु ऐसा नहीं मिलेगा जो चोरबाजारी करता हो जमाखोरी करता हो जालसाजी करता हो। आपको एक भी ऐसा वृक्ष नहीं मिलेगा जिसकी डालें आपस में लड़ती हों । कोई वृक्ष ऐसा नहीं मिलेगा जिसकी चार शाखाएँ आपस में लड़ती हों । आपको ऐसे हजारों मनुष्य मिलेंगे जो कालाबाजारी करते हैं चोरबाजारी करते हैं भ्रष्टाचारी हैं बेईमान हैं व्यभिचारी हैं और एक ही परिवार के चार भाई एक-दूसरे का सिर फोड़ देते हैं। मनुष्य जब अच्छा होता है तो देवता हो सकता है और मनुष्य जब बुरा होता है तो राक्षस हो जाता है। हमको आशंका यह है कि हमारी जैव प्रौद्योगिकी का एक दुरुपयोग यह हो सकता है कि उसके चलते ऐसा मनुष्य भी बने जो एक मानव रोबोट की तरह काम करने लगे जो केवल फरमाबरदार हो जिसका अपना विवेक शून्य हो जाए | उसे जो आदेश दिया जाएगा वह बिना विचारे करेगा यानी वह खतरनाक हथियार बन जाएगा। इसी तरह अणु अस्त्रों जीवाणु अस्त्रों आदि घोर विध्वंसक हथियारों के दुरुपयोग से उत्पन्न परिस्थिति की कल्पना मात्र से मन दहल उठता है। विज्ञान सचमुच दुधारी तलवार है। इसलिए विज्ञान के विकास पर हमें बराबर दृष्टि रखनी होगी कि इसका विकास मान व मंगल की दिशा में हो मानव अमंगल की दिशा में कदापि न हो। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि हमारा जीवन स्वस्थ सुखी हो हमारा देश प्रगति और समृद्धि के पथ पर निरन्तर अग्रसर होने में समर्थ हो सके । पीूदनरण्ण विज्ञान/ अक्टूबर 2002/4
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