मुमुक्षु पडि भाग - १ | Mumukshu Padi Vol.1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९ ) उसी प्रकार श्रीमन्त्र के द्वारा उत्पन्न होने वाला ज्ञान अनायास लग्य है । खूब ८-मगयन्मन्त्राश्चानेके । अनु०-भगबान के मन्त्र अनेक हैं । भा० दी०-श्रीमन्नारायण के जिस तरह कल्याण गुण नाम उनके गुणों के प्रकाशक अवतार एवं लीलाएँ असंख्य हैं उसी तरह भंगवाद के मन्त्र भी अनेक हैं । श्रीमन्नारायण के युणों को अनन्तता का प्रतिपादन करते हुए श्री पराशर भट्टर श्री रज्धराज- स्तव के उत्तर शतक में कहते हैं कि हे भगवान्‌ जिस तरह आप के कल्याणगुणराशि हैं उसी तरह आपके गुणों के प्रवाहों के ही समान आपके अवतारों की भी संख्या असंख्य है । आष्तां ते युणराशिवद्‌ गुणपरिवाट्ात्माँ जन्मना संख्या । इसी तरह दिंगू दिगन्त से पधारे हुए सामन्तों एवं प्रजाओं के द्वारा भगवान राम के यौवाराज्याभिषेक के समर्थन में गगनव्यापी जयघोष से आरश्चर्थित मद्ाराज दशरथ के द्वारा इस उत्कृष्ट समथंन का कारण पूछने पर प्रजाओं ने कहा-वहवों नृप कल्याणगुणाः पुत्रस्य सन्ति ते । अर्थात्‌ राजन आपके पुत्र . में अनेक कल्याणकारों गण है । अपने जन्मों को अनेकता का प्रति पादन करते हुए भगवान्‌ श्रीकृष्ण कहते हैं हे अजुन हमारे और ठुम्हारे अनेक जन्म बीत चुके है । बहुनि में व्यतीतानि जन्मानि तव चाजुनः श्रति भी बतलाती है कि भगवान के मूल मन्त्र अनन्त है ।




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