मनोरंजन पुस्तकमाला १९ | Manoranjan Pustakmaalaa 19

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Manoranjan Pustakmaalaa 19 by बाबू श्यामसुंदरदास - Babu Shyamsundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ जातियाँ भी ऐसी शासनपद्धति के अवढंबन करने के अयोग्य हैं क्योंकि ऐसा करने पर भिन्न भिन्न दलों के मतमतांतर संबंधी झगड़ों का प्रवेश शासन में हो जायगा जिससे एक दूसरे दल का घात किया जाना स्वाभाविक ही हे । कई जातियों में व्यक्तियों को दूसरों पर हुकूमत करने में ही आनंद आता है। ऐसी जातियों में जब प्रतिनिधि-सत्तात्मक राज्य का अ्रदण किया. जाता है तब हुकूमत करने के इच्छुक व्यक्ति अपने आपको झासक के तौर पर चुनवा छेते हैं तथा अपने अपने निचढे अधिकारियों पर कठोरता का बाजार गरम कर देते हैं । सारांदा यह है कि चाहे प्रजासत्तात्मक राज्य हो चाह प्रतिनिधि-सत्तासमक राज्य हो जातीय आचार की श्रेष्ठतता सभी में आवद््यक है । इस बात का रहस्य तब बिछकुछ प्रत्यक्ष हो जाता है जब कि हम भिन्न भिन्न . सभ्य देशों की शासनपद्धतियों का निरीक्षण करते हैं । अमेरिका तथा इंगढेंड की शासनपद्धतियों को देख कर ही युरोप की अन्य जातियों ने अपनी अपनी शासनपद्धतियों को बनाया है । परंतु क्या कारण है कि सब देशों की शझासन- पद्धतियाँ जिन जिन स्थानों पर एक दुसरे से सिढती भी हैं वहाँ पर भी कार्य में एक दुसेर से सबथा भिन्न हैं । इंगढ़ेंड की मंत्रिसभा की रीति पर फरासीसी मंत्रिसभा क्यों न सफलता से काम कर सकी ? इसी छिये कि दोनों जातियों का आचार व्यवहार भिन्न मिनन्‍न है । यहाँ पर यह न भूलना चाहिए कि जातीय आचार व्यवहार के सदा देश की भौगोलिक प्राकृतिक तथा राजनैतिक स्थितियों का भी झासन-




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