वैदिक कहानियां | Vaidik Kahaaniyaan

Vaidik Kahaaniyaan by बलदेव उपाध्याय - Baldev upadhayay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र जिसके छिये उसे दण्ड मिछना स्ाभाविक था । परन्तु वेद में उसका आत्मत्याग बढ़त दी उच्चकोटि का है । सेनिक बालकों के द्वारा किये गये अपराघ के निवारण के लिये सुकन्या वृद्ध ऋषि को आत्म समपंण करती है वेदिक तथा पौराशिक--दोनों कथानकों के पाथक्य पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है । ९ पुरस्कार--इसका आधार दे ऋ० वे० १०९५ शतपथ ब्राह्मण ( ११५१ )) बृदद्देवता ७1१४७--१५३. बेदाथंदीपिका १०९५ नीतिमज्ञरी प्र० ३२५-३२९. विष्णु पुराण ४1६५ मत्स्यपुराण अ० २४ प्रागवत ९१४ काढिदास--विक्रमोवंशी । पुरुरवा और उवंशी की कहानी वेद तथा पुराणों में खूब प्रषिद्ध है। काढिदास ने विक्रमोवंदी में इसी कथानक को नाटकीय रूप प्रदान किया है । इस कद्दानी के विकास का एक विशिष्ट इतिहास है। कालि- दास ने मत्स्यपुराण का आधार लेकर इस कथानक को नितान्त प्रेममय बना दिया है । परन्तु वैदिक काल में इसका कुछ दूसरा दी रूप था । पुरुरवा पढ़िला व्यक्ति या जिसने ज्रेघा अधि ( आइवनीय गाहपस्य और दच्चिणाम्रि ) की स्थापना की । यज्ञ संख्था का श्रारम्म कर वढ मानवों का महान उपकारी बन गया । पुरुरवा का यद परोपकारी रूप वैदिक कहानी की विशेषता है । इस आख्यान के भीतर एक रहस्प है । पुरुरवा सरय दे और उवंधी उषा हे । सूर्य और उषा का परस्पर संयोग बहुत दी क्षणिक काल के लिये होता हे। वियुक्त उषा की खोज में सुय॑ दिन भर उसके पीछे घूमा करता है । इस रदस्यमय आख्यान को कालिदास ने प्रणय का रूप प्रदान किया है । १० अधिकार--इस कहानी का श्राघार है ऋ० वे० १1११६।१२ श११७।२२ १०४८२ शतपथ ब्राह्मण १४।४।५।१३ बृडराययक उपनिषद्‌ २ श्रध्याय ५ ब्राह्मण बृदददवता ३।१८-१४ नोतिमझरी पू० ८६-९० भागवत पुराण ६)१० ।




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