काव्य दर्पण | Kaavya Darpan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 5४. ) दिये हैं। ( उदाहरणाथ फ्रायड वात्सव्य को भी रति भाव मामता है या ज्ुगुप्सा या घृणा भी एक प्रकार की रतिभावना ही है | ) अतः चूंकि रस-सिंद्धाम्त कोई भटक वस्तु नहीं हैं छंद भर्लकार भाषा आदि वाह रूपों के समान इमकी भी नये सिरे से व्याख्या होनी चाहिये । यह केचल अंग्रेजी साहित्य पर निभेर रहने का ही परिणाम है। रस-सिद्धान्त के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिक झनुसन्धान ने जो नया दृष्टिकोण उपस्थित कर दिया है वह क्‍या है इसका पूर्ण प्रतिपादन हो जाना चाहिये था। रससिद्धान्त में एक यह नयी बात जुड़ ज्ञाती या उसका रूप ही बदल जाता । उदाहरण की बात से तो यह मालूम होता है कि उससे कोई रससिद्धान्त नहीं बनता । ्ामूल घ्यन्तर की बात तो कोई झथे ही नहीं रखती । यह तो लेखिनी के साथ बलात्कार है। फ्रायड की यह कोई नयी बात नहीं दै । वाटसन 96115४1071571 नामक अ्न्थ में यदद बात लिख चुका है जिसका सारांश यह है कि सयौन-रति पुत्रादिविषयक रति ( वात्सल्य ) झादि सहजातीय सारी चित्तवत्तियाँ एक ही श्र णी की हैं | वार्सल्य तो रति है ही पर समालोचक के कहने का अभिप्राय यह मालूम होता है कि वात्सल्य में जो रति है वह कामवासनामुलक ही दे । चाहे वह सहेतुक दो वा अह्देतुक । इसकी पूर्ति स्पशं झालिंगन चुम्बन ादि से की जाती है। यही फ्रायड का सिद्धान्त है। वह तो यह भी कहता है कि बालक के स्तन चूसने और नग्न वक्षस्थल्ष पर उन्मुक्त भाव से पढ़े रहने पर एक परम अज्ञात और प्रकट काम-बासना-धारा दोनों ही प्राणियों माता और सन्तान के बीच प्रवाहित होती रददती है । हम इस सिद्धान्त को नहीं मानते । हमारे सम्बन्ध में संभव है यह कहा जाय कि हम अपनी संस्कृति सभ्यता तथा शिक्षा-दीक्षा के १ साहित्वसंदेश श्रगस्त १६४६ 2. 1.०४7€ 1९50078€8 10८घत८ ध108€.. 9०9पा8119 ८४110 भध८८(10180€ हु००00 कप €त घ्ाणितीड ..... 88 अदा] 28 1९80078€8) ज्€ 8९€ 1 20008 0८(फ़ा 8८5 1८१४ 811 087४९ ८0०00 01811 आाग्डेन के & 9 ए ०६ ए४५४0०9०1085 का उद्धरण । |




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