राजिया के सोरठे | Raajiya Ke Sorathe

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Raajiya Ke Sorathe by जगदीश सिंह गहलोत - Jagdish Singh Gehlot

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के ओो देस्‌ू के राजिया के सोरठे समभणहार . सुजाण नर औसर चूके नहीं । ओसर रो अवसाण रहे घणा दिन राजिया ॥१॥ चतुर श्रीर समकरार मनुष्य अच्छे अवसर को हाथ से नहीं खोते क्योंकि मो के पर किया हुआ श्हसान हे राजिया बहुत दिनों तक बना रहता है | जिणरो झनजल खाय खल तिण॒री खोटी करे | जड़ा मूल सूँ जाय राम न राखे राजिया ॥र२॥। जिसका अन्न-जल खाकर जो कोइ दुष्ट मनुष्य उसी का बुरा करता हे । हे राजिया ऐसे नमकह्राम जड़ से मिट जाते हैं उस इंश्वर भी नदीं बचा सकता | तज मन सारी घात इकतारी राखे झघक । वाँ मिनखा री बात राम निभावे राजिया ॥३॥ जा कपट छल इषों द्व प काम क्रोध आदि मनोविकार को छोड़ कर मेल मिलाप ऐक्य आदि रखते हैं हे राजिया उन मनुष्यों की बात परमात्मा अवश्य-रखता है । कुटल निपट नाकार नीच कपट छोड़े नहीं । उतम्त करे उपकार रूठा तूठा राजिया ॥४॥ १--श्रर्षी शब्द झदसान का बिगड़ा हुमा रूप ।




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