साहित्य - समीक्षा | Sahitya - Samiksha

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Sahitya - Samiksha by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कला फ मिलता है वही ब्र्मानंद सद्दोद्र कला का ध्येय है । परंतु उस श्ानंद में त्रौर इंद्रियगत आनंद में महान्‌ झ्रंतर है । उसके नाम पर वासना को उद्दीस करने वाले नग्न चित्रण नददीं होने चाहिये । कला का आ्रानंद विलास के श्रानंद से कहीं ऊंचा है । यदि कलाकार तटस्थता या तन्यमता का आनंद लेकर बैठना चाहता है तो भी हमें कुछ कहना नहीं है । परंतु यदि एकदम जीवन की सामग्री का उपयोग नहीं करता हवा में महल बनाता है तो वह एकदम निरधंक प्रयास कर रहा है और हमें उससे न कोई लाभ है न कोई हानि । अवश्य यह हानि हो सकती है कि वह दूसरों के जीवन को भी लस्य निष्कमंण्यता श्र दथह्दीन कल्पना से भर देगा जो निःसन्देह राष्ट्र के लिए हानिकारक बात होगी | इतने स्वप्-द्रण्ों का राष्ट्र क्या करेगा ? यह भी हो सकता है कि वह जिस पलायनशीलता का पोषण करता है वह श्औऔरों को भी नष्ट कर दे या जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को विक्वत कर दे । जिस तरह वह द्वारा है वे भी लड़ाई दारी सम । फिर समाज की अपनी स्थिति क्या रहेगी । जीवन का दूसरा श्रथ है निरंतर श्ध्यवसाय और पराक्रम । यदि हम जीना ( जीवन चनाए. रखना ) चाहते हैं तो वह कला दूप्रित है जो जीवन की लड़ाई को हारी हुई लड़ाई बताकर हमें हथियार डालने को कहती है । यदि दम श्रपने चारों श्रोर के जीवन से भाग कर एक काल्प- निक जगत्‌ में रहना चाहते हैं तो अपने चारों श्रोर के जीवन के ऐसे पहलू क्यों न ट्ढ़॒ लें जिनमें इस श्रानंद ले सकें । जीवन में ऐसी नमता है कि उसका कोई न कोई पहलू प्रत्येक मनुष्य को आनंद दे सकता है । फिर दम सगठृष्णा के पीछे क्यों पढ़ें १ जो कलाकार ऐसा




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