वृंदावनलाल वर्मा :समीक्षा और साहित्य | Vrindavanlal Varma : Sahitya Aur Samiksha

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Vrindavanlal Varma : Sahitya Aur Samiksha by सियारामशरण प्रसाद - Siaramsharan Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युग चेतना और पृष्ठभुमि £ अपना समाधान! प्रस्तुत किया । श्री वुन्दावनलाल वर्मा ने युग की आवश्यकता के अनुरूप ही नारी को परम महत्वपूर्ण मनुभव क्या । मैथिलीशरण गुप्त, हरिअं।घ, जयशकर प्रसाद आदि ने भी नारौ कौ महिमा मौर तेज के अधिकार को उद्वोषित करने के लिए नारी पात्रो पर ध्यान दिया। उपिला, प्रुवस्वामिनी आदि पात्रों का झध्ययन इस दृष्टि से अपेक्षित है । वुन्दावनराल वर्मा जी ने ऐसी सशक्त और गौरवशाखिनी वीर नारियो के चित्र उप- स्थित किये जिनके सम्मूख पुरुप भी नत मस्तक हो जाते हे । 'कचनार' में अचल्पुरी से स्पष्ट कहशाया भी है---“तुम्हारी (कचवार) सरीखी रित्रिया हमारे समाज में हो जायें तो घर-घर उजाला छा जाये 1 मौर भाववेश में महन्त से तो णहा तक कहला डाला है---/स्त्रिया पुष्षो की अपेक्षा अधिक वुद्धिशाली और चतुर होती है ।”* बर्नाई जा के 03 2000 10৩ दण में रेता वहती ২166 0010 1$7681]$ ৪. 81011005 0110 101 চ/01060, 1110 च्छा ৪৬০ 103 8101 200. 17167 ए10 लव 20 15 रि०्राध्वा०४ “स्त्रियों को उमने (शा ने) कला के रूप में अधिक देखा है, वासना! पूर्ि के साधन में नहों के वरावर ।('नई घारा,' शा अक, पृष्ठ १००) । प्रसाद जो ने जहा कामायनी के माध्यम से नारी को महत्वपूर्ण परम पद दिया वहा वर्मा जो ने दुर्वंर मौर मशक्त समझी जाने वाली नारी को वतलाया कि तुममें कितना तेज, कितना गृण केंद्रित है । 'झासी की रानी-ल्क्ष्मीवाई' में लेखक के परिद्निप्टरे में अकित विचार से मेरी घारणा की पुष्टि होती है। बाज के युग के अनुरूप ही उपेक्षितों, ६छितो के उद्धार के युग में डा० राम- कुमार वर्मा, दिनकर, प्रभात, मैथिछीशरण गुप्त आदि की दृष्टि क्रमश एकलव्य, वर्ण, कैकेयी, उमिला पर पडो है । यह पूर्ण सत्य है कि न्‍्यायसगत माग पर सूक्ष्म दृष्टिचेता, सवेदनशीछ क्लाकर की दृष्टि पडनी ही है । यह स्मरणोय तथ्य है कि वर्मा जी ने नारी-स्वातत्न के युग में उनके अतर्जातीय व्याह, रवच्छन्द विचरण त्तया तेजोमय खूप का निर्माण जिया, आदर नारी की प्रतिष्ठा की, वहा जैनेन्द्र, भगवतीचरण वर्मा, अ्जेय घादि ने मीन परिव ल्पनागो तथा वासना के निकृष्ट रूप में, भोग्य में भी उसे छूट दी, वादर्शवाद पर कुछराघ/त किया जो राष्ट्रीय निर्माण में क्यी दृष्टि से प्रथत्नीय प्रदत्त स्वीकृत नहीं हो सकता । यह तो नारियों को पय-श्रप्ट काने का मोह-गाज-सा है । জঙ্গী जी ने उपन्यास वा उदय रोचकता से पूर्ण, रम्बे एय्यारी कथानक से किया १ यरापाल ने अपनो वोड्धिक चेतना एवं चितन-प्रणाली के प्रनुरूप खतमना और अधिकार भचृण्ण के निमित्त उस पुस्ष का सहयोग श्रौचित्य झहराया ই जो मरितत की ताद विचार स्पता ऐो, जो “समार के सुख-दु ख अनुभव करता दे। अनुभूति और विचर द्वी मब शमित द 1 उम अनुभूति का भादान-प्रदान कर অনা ই। লহ जीवन में सतोष को अनुमति दे सकता है। सतति की पएपरा के रुप में मानवता को अमसल दे पका दे ।? (दिव्या) २. वुन्दचनज,ल वर्मो-कचनाए, ए० ४१८॥ र षी, १० २८७ ४ ममी क्ती रनौ - मोवा, १० ५०६ । ५ दिनकर ने रस्मि-रयी को सूमिका में लिखा ३--“यह युग दरितों और उ्पेदिनां फे च्छरकायुगदै। पच्य 1 रु




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