उपन्यास : स्थिति और गति | Upanyas : Sthiti Aur Gati

Upanyas : Sthiti Aur Gati by चंद्रकांत बांदिवडेकर - Chandrakant Baandivadekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 उपन्यास स्थिति और गति ही भेद हैं । कथातत्त्व पर आक्रमण अगर 50-60 वर्ष पुराना है तो चरित्र पर आकर मण 20-25 वर्ष पुराना हो गया है । अपनी निमित प्रक्रिया के संबंध में लेखक जैसे-जैमे अधिक सजग होकर मानवीय मन के तल को छूने का सचेत प्रयटन करने लगे वैसे-वंसे अवचेतन-चेतन मन के व्यापारों ने लेखन-प्रक्रिया पर अधिक प्रकाश डालना शुरू किया और परिणामत चरित्रों के पीछे जो असलियत है संदर्भ है उसका मी ज्ञान होने लगा और उपन्यास में चरित्नों के पीछे की स्थितियों को अथवा संदर्भ को महत्त्व मिलने लगा । चरित्र-चित्रण मानव जीवन के यथार्थ दशन का एक महत्त्वपूर्ण साधन जिस जीवन शब्द का साहित्य की चर्चा में हम जप करते रहते हैं वह क्या है? परिभाषा यहाँ अभीष्ट नहीं है। कहीं-न-कहीं हमें जीवन के संबंध में बात करते समय व्यक्ति के अनुभव के संदर्भ में ही बोलना पड़ता है । यह अनुभव व्यक्ति और व्यक्ति के परस्पर संबंधों का व्यक्ति के परिवार समाज राष्ट्र विश्व के साथ संबंधों का अथवा व्यक्ति के अंतमंन के परस्पर संबंधों का हो सकता है । यह सामंजस्यपुर्ण हो सकता है या इंद्वात्मक । अंततोगत्वा जिसे हम जीवन कहते हैं वह इन संबंधों की ही बात है । ये संबंध विस्तृत होते हैं स्थूल या सूक्ष्म भी । ये स्थिर भी होते हैं गतिशील भी । ये उच्छल भी होते हैं और गहन भी | ये ठंहै चुजे तथा कठोर भी होते हैं और उत्तेजक और तीव्र भी । इन संबंधों का स्वरूप शब्द से परिभाषित करना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है । स्वाभा- विक रूप में जीवन का भाष्य करते समय समग्र जीवन को व्यक्त करने की आकांक्षा से प्रेरित विधा में कथा के स्थान पर व्यक्ति और उसके संबंध ही केंद्र में आ गए--चरित्र-चित्रण उपन्यास का प्राणभूत तत्त्व बना । काव्य में जो स्थान अनुभव की ऐंद्रिय-प्रतीति देनेवाले बिम्बों और प्रतीकों का होता है वहीं स्थान उपन्यास-विधा में चरिव्लों का माना जाने लगा । चरित्र ही बिब समझे गये । -/अट्ठीरहवीं-उननीसवीं सदी में ज्ञान-विज्ञान के विस्तृत होते जाने वाले क्षितिजों के मूल में व्यक्ति के अपुर्वं बुद्धि-कौगल को देखा जा सकता था । अनजान भू-प्रदेशों की यात्रा कर देश के गौरव को बढ़ाने के मूल में व्यक्ति के पराक्रम को स्वीकार किया जा सकता था । अपनी बौद्धिक क्षमता भौर साहसिकता के बल पर मनुष्य दूसरों पर प्रभाव डाल सकता था । अत व्यक्ति के महत्त्व के युग में उपन्यास में जिसके पीछे रोमानी काव्य की परंपरा भी थी व्यक्तिनच रित्र हीरो के रूप में चित्रित हुआ । फिर यह स्थिति बदलने लगी। मनोविज्ञान समाज- विज्ञान नृतत्त्व-विज्ञान भौतिक विज्ञान दर्शन तथा बढ़ती तकनीकी प्रगति ने व्यक्ति की सीमाओं का ज्ञान ही नहीं कराया उसके दु्बेल सहाय फालतू रूप को भी उद्घाटित किया अब इस हीरो का उपयोग उपन्यास में व्यंगात्सक




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