राजपूताने का इतिहास खंड - २ | Rajputane Ka Itihas Khand -2
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
61.12 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४१४ राजपूतान दा इतिदास गुचि० से० 2८० (इ० स० 2२३) में चलभीपुर का नाश होने पर वहां का राजयेश मेवाड़ में भाग ाया उस समय से लेकर यापा के जन्म तक १४१ चथे होने चाहियें परन्तु यह कथन विश्वास के योग्य नहीं है क्योंकि बलसी पुर का नाश दोने पर वहां का राजवंश मेवाड़ में नहीं झाया ओर वलभीयुर का नाश वि० से० शद० ( इ० स० 2२३ ) में नहीं किन्तु वि० सें० दरेद ( द० स० ७४ ) में होना ऊपर बतलाया जा चुका है | यदि इस जनश्ुति का प्रचार किसी वास्तविक सब के झाघार पर इु्आा हो तो उसके लिये केवल यदी करपना की जा सकती हे कि प्राचीन लिपि में ७ का अंक पिछले समय के १ के अ कसा होता था जिससे किसी प्राचीन पुस्तक झादि में बापा का समय ७८१ लिखा इुझा दो जिसको पिछुणे समय में १६१ पढ़कर उसका उक्त संवत् में राजा दोना मान लिया गया हो । कमल टॉड ने वि० सं० ७६६ ( दे० स० ७१९२-१३ ) में बापा का जन्म होना श्र १४ वे की व्चस्था में वि० से० ७८४ ( ई० स० ७२७ ) में मोरियों से चिलोड़ का शिला लेना माना है । यदि बापा के जन्म का यदद संवव् ७६६ ( ई० स० ७१९२-१३ ) ठीक दो तो २१५ वे की छोटी अवस्था में लचिसोड़ का क्रिस लेना ( या राज्य पाना ) न मानकर २२ च्ष की युवावस्था में उस घटना का होना. मानें तो बाया का राज्य-समय बि० सं० ७९१ से ८१० ( इ० स० ७३४ से ७४३ ) तक स्थिर होगा । लि न्डुस्तान में प्राचीन काल से स्वसत्त्र एंव बड़े राजा अपने नाम के सोते चांदी और तांबे के सिके चलाते थे । राजा शुदिख के यांदी के सलिक्ों तथा राजा शील (शीलादित्य) के तांबे के लिझे का बरीन ऊपर किया जा चुका है वावा का अब तक केवल एक दी सोने का #९/ ९१ ५/ताा७/ हा हा ७ हि हीं बापा का सिक्का (१9) रा जि० १ प्ृ० २६४ । (२) मेवाड़ के राजा शीलादित्य के समय के वि० सं० ७०३ (ईं० स० ६४६ ) के सामोली गांव से मिले हुए शिलालेख में -जो इंस समय राजपुताना स्यूज़ियमू श्रजमेर में सुरक्षित हे-७ का झंक बर्तसान १ के अंक से ठीक मिलता हुआ है जिसको प्राचीन लिपियों से परिचय न रखनेवाला पुरुष १ का अंक ही पढ़ेगा । इस प्रकार के ७ के अंक और भी कई शिलालेखों में मिखते हैं । ( ३) रॉ रा जि० १ पृ० २६४ |
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