नीति - श्रंगार - वैराग्य | Neeti-srindr-vairagaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क नीतिशतकम्‌ के श्द झत्ता इछ २ नस चबीं झादि लगे हुए मांस रहित भी हड्डी को प्राप्त कर सन्तुष्ट होता है परन्हु उससे उसकी ल्लुधा शान्त नहीं होती । सिंह समीप झ्ाये हुए भी गीदड़कों छोड़कर दाथोको ह्दी मारता है । तात्पये यह निकला छि-सभी प्राणी कष्टावत्थामें रहने परभो अपनी शक्तिके अलुदार ही फलकी इच्छा करता है ॥। ३०)) लॉंगठचालनम घश्चरणावपातं . भूमी निपत्य वदनोदरदर्शन्व । रवा पिण्डदस्य कुरुते गजपुड़चस्तु घोर पिठोकयति चादुशतैश्र भडक्ते ॥३१॥ छा सरगना खिलारेवालेके आगे पूछ दिला पेरापर गिर भूमि में लोटपाट ८7 मुँह और पेटकं दिखा चापलूसी करता है परन हाथी राटं ६लानेवालेकी ओर केवल एकवार गंभीरता से देखता ि ह कीं र बढ़ी यान सनोती करनेके बाद भोजन करता है ॥३१॥| रेवतिनि संसारे सृतः को वा न जायते । स जाता येन जातेन याति वंश समुन्नतिम्‌ ॥ ३२॥। _ इस परिषत शोल संशरमें कौन नहीं मरता और कोन ० 3 का नह जगत परन्तु उसका जन्म लेना सकल है जिससे कि वशकों दस्त हे हो 0 ३२ । कर बम. बन लॉ नमूने ुलमनान्थान बिका. वृने5 थ मष्न वो सवबछोकस्य पविशायेत पा डे।। शुकि गुन्छेकी तरह अच्छे पुरुपोंकी दो ही गति हुआ करती है या तो व सब लोगों के मस्तक पर ही रहना है या वह




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