बुद्ध कथा | Buddha - Katha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ भावना का प्रतीक था । अस्तु भगवान्‌ का अस्तित्व सानने के लिए बे उत्सुक नहीं हुए । उस पुरुप ने देखा इस लोक में परलोक की कल्पना करनेवाछो को । इस जीवन में सब कुछ देकर दूसरे जीवन में पानेवालो की लम्बी पक्ति को दिशाओं की पूजा कर दिगाओ को प्रसन्न करनेवालो को । किन्तु दिशाएँ सहायक न हुई । कुछ वोल न सकी । दिद्याहीन एक मत उठा । आकादा छोरहद्दीन है । आकाश दिशाहीन है । सीमा हीन है । ईदवर ही चिदाकाद है । वह आकान तुल्य है । मनुष्य चित्ताकाश है । यह जगत भूताकाश में स्थित है । लेकिन यह चिदाकाश चित्ताकादा भूताकान केवल कत्पना बनकर रह गये । जन्म मृत्यु दु ख कष्ट उत्पत्ति स्थिति लय से प्राणियों को वचा नही सके । अर्घ का जल नदी में गिरकर नदी जल मे अस्तित्व खो बैठा । भूमि पर गिरा जल विन्दु सुख गया । कोई दिशाओ को स्पर्श नही कर सका । कोई दिशाओ को पार नहीं कर सका । कोई आकाश को त्पर्श नही कर सका । उसमें सिल नहीं सका । आकाण सहायक नही हो सका । उस पुरुष ने देखा । वृक्षो पर पक्षियों की तरह घोसलो में रहते मनुष्यों को । शाखो से छटके मनुष्यो को । शाखों से उलटें झूलते मनुप्यो को । पंच अर्नि के सम्मुख बैठकर शरीर सुखानेवाले मनुष्यों को । अपने शरीर को नाना प्रकार की कष्ट साध्य तपस्या मे पीडित करनेवाले मनुष्यों को । इस आशा मे यहाँ कष्ट उठाने पर उन्हे कद्दी और सुख मिकेगा । लेकिन कोई परलोक जाकर अपनी कहानी सुनाने नही भाया । इस परलोक की भी विचित्र छिछालेदर की गयी । यहूदियो का परलोक एक तरह का ईसाइयो का परलोक एक दूसरी तरह का पारसियो का तीसरी तरह का मुसलमानों का चौथी तरह का और हिन्दुओं में शव वैष्णव दाक्ति आदि सभी सम्प्रदायों का परलोक भिन्न-भिन्न रूप आकार-प्रकार तथा प्रसाधनो से युक्त माना गयो । किसी एक सम्प्रदाय के स्वर्ग का रूप किसी दूसरे सम्प्रदाय के पर- लोक के रूप से मेल नही खा सका । सबने अपने स्वर्ग को अपने परलोक को सत्य माना । यहीं उनका विश्वास था । सब धर्मों ने स्वर्ग परछोक अछग-अलग माना । यह स्वाभाविक था । उनके भावना की कल्पना यदि अलग-अलग थी तो स्वर्ग परलोक भी अलग होना चाहिए था ।




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