जायसी की भाषा | Jayasi Ki Bhasha

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Jayasi Ki Bhasha by डॉ. दीनदयालु गुप्त - Dr. Deendayalu Guptडॉ. प्रभाकर शुक्ल - Dr. Prabhakar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 5 ) आधार बनाया गया है क्योकि जायसी-क।व्य के समस्त सस्करणो मे वह सबसे अधिक प्रामाणिक है । अन्य सस्करणों को ध्यान मे रखने तथा यत्र-तत्र उनके उपयोग का भी प्रयास किस गगा हें किन्तु विवेतना में उदाहरण डॉ गुप्त वाते सस्करण से ही दिए गये है। है कि डॉ० गुत्त को थी आखिरी नालाम तथा अखरावट का स्वसम्पादित पाठ जपतोपतनक सगा है पयोकि उन्हें इन ग्रन्थों की कोई प्राचीस प्रति नहीं मिल सकी । सहरी नाईसी या नी पड सकातत सप्भव लही हो फ। हे क्योकि यह कृति केवल सन्‌ ११९४ हिजरी की एफ प्रति के अत्वतर पर सपाद्ति हुई न जिससे कही-कहीं पक्तियाँ तक छठी हुई है । प्रस्तुत अध्ययन में उन तीनों जा को नत्पां विवेचित है किन्तु भाषा सम्बन्धी तथ्यों को जुटिरहित रख के उददण्य से उदाहरण पद्मावत से दिए गये दे । जागसी के समीक्षको ने उनकी काव्य-क्ा पर प्रकाण डालने हुए प्रसगवश ही भाषा के सम्बन्ध से विचार फिया है । इस क्षेत्र में भागाविपयक विस्तृत अध्ययन को आवश्यकता का अपुभव तो किया जाता रहा ह किन्तु फिसी भी त्रिद्धान ने अब तक विशेष प्रयास नहीं फिया था । जायपी-फाब्+ और उरगकी जालो चना के रूप मे जो सामग्री अब तक प्रकाश मे आई हे स्थूल रूप से उसे तीन वर्गों मे विभाजित किया जा सकता है - - (१) अथवा जायगसी-ग्रशावती के स म्पादित सस्करण । (२) सूग पाठरहित पदमावत की टीकाएँ | (३) जायसी-साहित्य के आलोचनात्मक जध्ययन | प्रथम वर्ग के अन्तर्गत निम्नलिखित सस्करणों का उत्लेख किया जा सकता हे - १८ नव नकिणोर प्रेस लखनऊ में सन्‌ १८८१ ई० में प्रकाशित (सम्पादक अज्ञात) । २. सम्पादक प० रामजसन मिश्र सदद्रप्रभा प्रेस काणी से सन्‌ १८८४ ई० में प्रकाशित । ३. सम्पादक मौलवी अलीहसन मुणी नवलकिणोर द्वारा प्रकाशित (तिथि अज्ञात) । ४. सम्पादक अहमद अनी गेख मृत्म्मद अजीमुल्लाह द्वारा कानपुर से प्रकाशित (तिथि अज्ञात) । ४ यंगवासी फर्म द्वारा सन्‌ १८६६ ई० में प्रकाशित । ६. दि पढुमावति ऑफ गलिक सुदस्यद जागसी (१ से २४५ खण्ड तक) सं० जॉजें ए० प्रियरसन तथा महामहोपाध्याग सुधाका दिवेदी एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल कलकत्ता द्वारा सन्‌ १८६६-१९४११ में प्रकागित । ७. जायसी-प्रंथावली सं० पं० रासचन्द्र शुक्ल नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा प्रकाशित । प्रथम सस्करण सन्‌ १९२४ ई० द्वितीय सस्करण सन्‌ १९३४ ई० । प्रथम सस्करण में पदमावत और अखरावट संकलित थे द्वितीय रस्करण में आखिरी कलाम भी सम्मिलित है ।




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