उपनिषदों की भूमिका | Upanishdon Ki Bhoomika

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Book Image : उपनिषदों की भूमिका  - Upanishdon Ki Bhoomika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन वा अन्तःकरण श और भूख का दुर करने वाला है तब वह इस नतीजे पर पहुं- चता है कि में इसको खाउं अथवा यह मेरे लिये है तब वह खस को खालेता है। अब यह चार काम हुए हैं सोचना निश्चय करना स्मरण करना और अपने साथ सम्बन्ध जोड़ना । यह काम चारों एक मन के ही हैं । पर इन चारों के भेद से बदद मन बुद्धि चित्त अहड्लार इन चार भिन्न २ नामों से कहा जाता है । जीवात्मा जिन पदार्थों को भोगता है वह चिषय हैं (२९) विषय का प्रकृति से जो कुछ बना है बह या तो चणन | देह और इन्द्रिय हैं या इनके सिवाय जो कुछ है चह सब विषय है । क्योंकि इस जगत्‌ में जो कुछ रचना हुई है वह सब किसी न किसी जीव के उपभोग में आती है । परमात्मा ने यह सारा जगत्‌ रचा ही अपनी प्रज्ञा -के उपभोग के लिये है । इस लिये हर एक वस्तु किसी न सिसी के उपभोग का साधन बनती है जो जिस के उपभोग का साघन बनती है वह उसके लिये विषय है। यह सब .( देह इन्द्िय और विषय ) प्रकृति का काय है । माया स्वतन्त्रशक्ति नहीं किन्तु ब्रह्म की एक शक्ति ( रु ) माया बहा विशेष है। जो ब्रह्म के अधीन काय की शक्ति विदोष है । ही करती है । अर्थात्‌ ब्रह्म इस में आत्सा है और यह उसके शरीर के तौर पर है । जिस तरह मकड़ी अपने शरोर से तस्तु निकाल कर तनती है इसी तरह न्रह्म माया से इस जगत्‌ को निकाल कर तनता है । जिस तरह मजुष्य का बोज़ गर्भाशय में ज्ञाकर श्रति-




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