सनातन धर्म - शिक्षा | Sanatan Dharm - Shiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 (१२) ३ सनातनघरमेशिक्षा है लो सकल अनित्य वस्तुओंमें एकमात्र नित्य है जो सफल . ९ चेतनोंका चेत यिता हैं(जो अकेला दी सकल पाशियोंकी काम्य 2 बस्तुओंका विधान करता हे । जे धीर पुरुष उसके झात्या में 1 स्थित्त देखते हैं उनके नित्य शान्ति माप्त होती है दूसरोंका । कभी नहीं मिलसकती । ं प्रचेश्धात्मनि चात्मानं थागी तिछ॒ति योध्चलः । पापं दन्ति पुनीतानां पद्माझोति साव्जरम्‌॥। है |. जा परपात्माफे साथ अपने आत्माका मिलाकर छाटलभावसे | 1 यागीके स्वरूपमें स्थित देता है बह पापका नाश करता है झौर | अक्षय ब्रह्मपदके। पाता है । ी युन्जन्नेव॑ सदात्मानं योगी विगतकल्मषः । सुखेन ब्रह्मसंरपशमत्पन्तं सुखसश्चुते ॥। ं |... इसपकार योगी पुरुष परमात्पाके साथ झपने झात्पाका | । संयाग करके निष्पाप है सुखसे ब्रह्मसपशके झानंदका भोगता है। तावद्िचारयेत्प्राज्ञो यावद्िश्ांतमात्मनि | संप्रपात्यपुननोशां स्थिति तुयेपदाशिधास्‌ ॥ . जब तक परमात्मा विश्वाम नहीं मिसो तब तक तस्ववियार करता रहें क्योंकि ऐसा करनेसे शुद्ध चेतन्य परमात्माके साथ अझविनाशी एकता मिलती है | सत्येन लभ्यस्तपसा छोष झात्मा सम्घग्ज्ञानेन घ्रह्मचरयोण नित्यस | झन्तःशरीरे ज्योतिमयेा हि शुभ्रो ये पश्यन्ति पतयः चीणदोषा ॥। जिस परमात्मा के निपत सत्य तपस्या सम्पक ज्ञान और | न्रह्मज्रण्के द्वारा पायाजाता है वह ज्योतिमंय स्वच्छ परमेश्वर उसका ही दर्शन करते हैं कि दि. कै 0 दी... 4... मान ाडमदडधनलपननननिए ले पवाा




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