भारतीय संस्कृति का इतिहास | Bharatiya Sanskriti Ka Itihas

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श्री वासुदेवशरण अग्रवाल - Shri Vasudevsharan Agarwal

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स्कन्द कुमार - Skand Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थु 9 सारतीय संस्कृति का इतिहास _ बिश--बहुत से आमों का समूह विश ( कबीला ) कहा जाता था । बिशू का प्रधान विशुषति और यदि बिशू बड़ा हुआ तो राजा कहलाता था । न .. जन--कई विश या कबीलें साथ मिलकर जन बनाते थे । जन के बसाए हुए भूमाग को जनपद कहते थे । जन का नेता राजा होता था। राजा जनों के संबंधों युद्ध तथा जन के हित के कार्यों में नेतृत्व ग्रहण करता था । देश या राज्य के लिए राष्ट्र शब्द का मर योग प्रायः आया है | समाज के प्रत्येक व्यक्ति का भली श्रकार से विकास हो इसकी भी व्यवस्था थी । प्रत्येक आये के कुछ संस्कार होते थे जिनकी व्यवस्था जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक की जाती थी । इनमें मुख्य संस्कार ये थे-नामकरण बिद्यारंभ और यज्ञोपवोत विवाह तथा अन्त्येष्टि | गर्भोधान भी संस्कार माना जाता था जिसका महत्व इस बात में था कि ग्रहस्थ धर्म का पालन सन्तानोतत्ति के वास्ते ही था । आश्रम--जीवन क्रम को नियम के साँचे में ढालने के लिए श्रह्मचयं गृहस्थ बानप्रस्थ और संन्यास इन चार आश्रमों का विधान था | इन आश्रमों के पालन की प्रथा आरयोँ में सबंभान्य थी । परन्तु कभी कभी परिवतेन भी होते रहते थे । वर्ण व्यवस्था--आर्यों में जाति तथा वर्ण व्यवस्था थी । शुण कमें तथा संस्कारों के छावुसार चार वर्ण ब्राह्मण क्षत्रिय वेश्य तथा शूद्र थे । जन्म के अनुसार मनुष्य श्रेष्ठ माना जा सकता था पर वह यदि. अपने कर्मों को छोड़ दे और चरित्र श्रष्ट हो जाय तो ब्राह्मण भी शुद्र से हीन हो जाता था । चरित्रवान्‌ तथा गुणी शूद्र भो सम्मान का भागी होता था। मी व राज्य ्यौर उनका संगठन--भारतवष में आयों के राज्यों . का




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