बापू | Bapu

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Bapu by सियारामशरण गुप्त - Siyaramsharan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छोभ-दस्यु छूट-पाट करके बस्ख-घन ले गया है हरके । कितने युगों की घनीभूत रात जानें कब होगा प्रात ? दीखता अकाव्य ही विकट ध्वान्त | नूतन शताब्द-शिंशु-हेतु वे सभी अशान्त । हो न अरे सन्तति का सवस्वान्त रात्रि बढ़ती ही प्रति पठ है । रात्रि कट जाय तब वह भी सफल है - पाकर प्रकाशसणि | हायरी प्रकाशमणि --कोन खनि घारण किये है तुभ्द अन्तर में पुष्टिकर उर के अजख्र दुग्ध-सर में ? बहुत युगों के बाद पूर्व-पुण्यस्थल की आशा अहा | आशा वह झलकी । ९ ९ ९ ७... .. न धर देखो तो सुना ता धय धरक




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