आत्म विकास की राहें | Aatm Vikas Ki Rahen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद भारतीय संस्कृति के ममंज्ञ साहित्य-उपासक मौलिक-चिन्तक श्री काका साहब कालेलकर जी की प्रस्तावना-पंक्तियों से पुस्तक की शोभा में चार चाँद लग गये हैं । उनके उपकार को हम कभी न भूल सकेंगे । जिन विद्वान्‌ विवेचकों ने अपनी अमूल्य सम्मतियों से हमें उत्साहित किया है हम हृदय से उनके ऋणी हैं । जहाँ-तहाँ गीता के श्लोक उद्धत किये हैं उनके आगे केवल अध्याय और श्लोक का प्रतीक लिखकर छोड़ दिया है पाठक उन्हें गीता के श्लोक ही समझें । आत्म विकास की राहें के अध्ययन से यदि दो-चार पाठकों को जीवन की राह स्पष्ट हो सकी तो हम अपना परिश्रम सफल समझेंगे । सवे भवन्तु सुखिन सर्वे सन्तु निरामया । से भद्राणि पश्यन्तु मा कश्थि दुदुःखभाग्‌ भवेत्‌ ॥। शनिवार २० जून १९६४ नित्यानन्द पटेल गुल काटेज नवसारी




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