संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो | Sankshipt Prithavi Raj Raso
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
87.66 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)... आनन्द-निजनर चित्र को पूर्णरूप से प्रकट करती है । कथानक-रूढ़ियों की दृष्टि. ( १३. ) दो प्राकुत गाथाएँं तो रासो में भी प्राय वही हैं जो संदेश रासक में हैं । फिर सन्देश रासक में बीच-बीच में कवि सुचना देता है कि अमुक पात्र ने अमुक छन्द में अपनी बात कही है। उसी प्रकार पृथ्वीराज रासो में भी बीच-बीच में कह दिया गया है कि अमुक पात्र ने असुक छंद में अपनी बात कही । इन सब बातों पर विचार करने से ऐसा जान पड़ता है कि चन्द ने भी अपभ्रश के रासकों की शैली पर ही अपना रासो लिखा । सन्देश रासक में लगभग एक तिहाई पद्य रासक छन्दों में हैं । पृथ्वीराज रासो में रासक छंद बहुत कम व्यवहूत हुआ है । पर सन्देश रासक से यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि रासक ग्रंथों में दूसरे छन्दों का--विशेषकर दोहा और गाथा का प्रचुर प्रयोग होता था । वीररस की प्रधानता होने के कारण चन्द ने छप्पय छन्दों का अधिक प्रयोग किया था । इस दृष्टि से विचार करने पर रासो के सिम्नलिखित प्रसंग प्रामाणिक जान पड़ते हूँ-- १ भारंभिक अंश २. इंछिती विवाह ३. शशिव्रता का गन्धर्व विवाह ४. तोमर पाहार का शहाबुद्दीन को पकड़ना ५. संयोगिता का जन्म विवाह तथा इंछ़िनी और सं योगिता की प्रतिद्वंद्वित भौर समझौता । इन अंधशों की भाषां में उस प्रकार की बेडौल और बेमेल टूँस-ठाँस नहीं है और कवित्त का सहज प्रभाव है । इसमें चन्द बरदाई ऐसे सहज प्रफुल्ल कवि के रूप में दृष्टिगत होते हैं जो विषम परिस्थितियों से भी जीवन रस _ खींचते रहते हैं । वे केवल कल्पनाविलासी कवि ही नहीं निपुण मन्त्रदाता के रूप में भी सामने आते हैं । चाहे रूप और शोभा का ब्णन हो चाहे ऋतु- वर्णन की उत्फूल्लता का प्रसंग हो या युद्ध की भेरी का प्रसंग हो चन्द बरदाई _ सर्वेत्न एक समान अविचलित और प्रसन्न दिखाई पड़ते हैं । रूप और सौंदयें के संग में उनकी कविता रुकना ही नहीं. जानती । निस्सन्देह उन्होंने काव्यगत ... रूढ़ियों का बहुत व्यवहार किया है और परंपरा प्रचलित उपमानों से. सौंदयं _ की अभिव्यंजना उनके साहित्य का प्रधान कौशल है तथापि वह कवि के ः से तो चन्द का काव्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और. परवर्तीकाल में जिन लोगों दर गे ने उसमें प्रक्षेप किया है वे चंद की इस प्रवृत्ति को बहुत अच्छी तरह पहचानते १.२. विशेष विस्तार के लिए देखिए--हिस्दी साहित्य का आविकाल रे पढ़ना पद ते पर.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...