भारत महिला मंडल | Bharat Mahila Mandal

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Bharat Mahila Mandal by हनुमन्त सिंह - Hanumant Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९३ शये । जय इस भयंकर पोर पाप की रूरने के लिये डूं यधक नहीं मिलता था | भद्दाराया के समीपी स- नदी मदाराज दौलत सिंद की शोर जब सब ने हेत करके कहा कि ये दो चद्यपुर की प्रतिप्ठा रक्‍्येंगे 1 वे क्र होकर कहने लगे कि “ धिक्लार दे चस पुरूप 1 जी मुक से इस सिर्दोष कन्या के यध करने के लिये फहे परे साफ पढ़ें उस « मातेदारी पर जी इस शधम पाप रिंपर रहे ”। तब मदाराणा का एफ खवासज़ाद भाई दाराज जीवनदास इस काम के लिये बुलाया गया शीर रखे समभा कर फ्रह्म गया कि आब उदभपुर फी मतिष्ठा चाने के लिये केवल एक यही उपाय रद गया है दि जकुमारी का ही वध कर हाला ज्ञाय । किसी सामान्य रुष से यह कार्ये हो नहीं सफता । इस पर बढ़ कृष्णा [सारी को मारने के लिये उद्यत हो गया परन्तु जब बह इल में पहुंचा जहां वह परम रुपवती नेवयौवना राजकन्या टी हुई थी तो उसकी मनोहर भोली सूरत देखते ही सदूग सके दाथ से गिर पढ़ श्तौर घह पश्चात्ताप करता और प्रपनी दुप्टता पर लज्जित होता हुआ पीछे को लौटा परन्तु मद सब मेद कृष्णाझुमारी शौर उसकी माता पर फ्कट हो गया । माता सोहवश शपनी निर्दोष कन्या के सारने वाले को कुवाच्य कहने लगी शऔर चिपम शोक वे थिवेफशुन्प होकर उच्च स्वर से सदन करने लगी परन्तु थीरकन्या अपने पिता, दंश शौर देश हित के हेतु अपनि म्राण त्याग को सहपें सद्यत हो गई । झदा कृपण से मारने के. बदले चिप देने का विचार हुया । एक ,दासी ने रोते दे मद्दाराणा को श्राज्ञा से दिए का




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