संस्कृति | Sanskriti

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Sanskriti by आदित्य नाथ - Aaditya Nath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नल राजपुरुष श्रौर संस्कृति घिकारी ही कमेटी का अध्यक्ष होता है। इन कान्फ्ेन्सों के लिए कया बम्बई के फ़िल्म- प्लेबैक गायकों को बुलाना लाजिमी है चाहे वे भ्रच्छे हों या बुरे ? इस तरह के श्रनेक छोटे-बड़े मामलों में यदि उच्च अधिकारी की श्रोर से सुरुचि- सूचक सुभाव दिये जायें तो निश्चय ही परिमार्जित कलात्मकता का कुछ तो वातावरण फैलेगा ही । लेकिन परिमार्जित रुचि ही ज़िलों में काम करने वाले अधिकारियों के लिए. यथेष्ट नहीं है। वस्तुत जिन श्रफ़्सरों को छोटे सगरों ग्रामीण श्रंचलों और झ्रादि- वासियों के बीच काम करना होता है वे यदि शुद्ध नागरिक कला श्रौर संस्कृति में ही मंजे हुए हों तो उन्हें ग्रामीण श्रौर वन्य वातावरण में सौन्दय श्रौर कला की भलक भी न दीखेगी । संस्कृति के क्षेत्र में इस तरह का उच्चस्तरीय दम्भ जिसे भ्रंग्रेजी में हाइब्राउ टेस्ट कहा जाता है शासकीय अधिकारी के दृष्टिकोण को सीमित कर देता है। उसे तो ग्राम-गीतों की मधुर किन्तु सरल तानों लोकनृत्य की श्रादिम किन्तु मनोमोहक लय- ताल लोकनाटक के उच्छ खल किन्तु चुस्त संवादों में रस लेने की क्षमता होनी चाहिए। वस्तुत झाजकल के शासकीय श्रधिकारी के लिए शास्त्र-सम्मत श्रौर नागरिक कलाश्रों की जानकारी की श्रपेक्षा यह कहीं श्रधिक ज़रूरी है कि वह लोक श्रौर ग्रामीण कलाय्ों के सौन्दर्य के प्रति भी जागरूक हो । प्राय क्षेत्रों में भी अब फिल्‍मों श्र फिल्मसंगीत का प्रदशन करके जनता को एकत्र करने का तरीका श्रफ़्सर अपनाने लगे हैं। निस्संदेह जनसाधारण के दैनिक एकरसमूलक जीवन में ये प्रदर्शन थोड़ी-बहुत रंगीनी श्रौर श्रानंद का संचरण कर देते हैं ग्रौर यों सरकारी श्रफसर की बात सुनने श्रौर उसका संदेश ग्रहण करने के लिए उनकी मनोभुमि तैयार हो जाती है । परन्तु एक पहलू पर शायद ही किसी की निगाह गई हो --श्रौर वह यह कि ये सब शझ्राघुनिक बहुजन-सम्प्रेषण-साधन (मास- मीडिया) इकतरफा करतब ही दिखा पाते हैं गांववाले स्वयं इनमें भाग नहीं लेते - वे तो मात्र निष्क्रिय श्रोता श्रौर प्रेक्षक बने रहते हैं । क्या यह जुरूरी नहीं है कि ये लोग स्वयं भी गीत श्रौर नृत्य द्वारा उल्लास श्रौर थधिरकन-सहित सक्रिय हों जैसा कि गांवों के सामु- दायिक जीवन में हमेशा होता श्राया है ्रौर जिसके लिए लोक-गीत-नृत्य इत्यादि की परम्परा अब तक बराबर उपलब्ध रही है ? लोक-संस्क्ृति की ये परम्पराएं न केवल कलात्मक हैं वरन्‌ सांस्कृतिक घरोहर हैं जैसी कि शास्त्रीय संगीत श्रौ र नृत्य अथवा प्राचीन साहित्यिक नाट्य इत्यादि । तात्पयं यह है कि यदि जिले श्रथवा ग्रामीण अंचल में काम करने वाला सरकारी अफसर स्थानीय जनता से श्रपने परम्परागत मनोरंजन माध्यमों का समीचीन उपयोग करा सके तो एक शभ्रोर तो वह ग्रामीण समाज की सामुदायिक भावना को परि- पुष्ट कर सकेगा श्रौर दूसरी श्रोर लोक संगीत-नृत्य-नाट्य की. बहुमूल्य विरासत के संर- क्षण श्रौर संवर्धन में योगदान दे सकेगा। इस विरासत को सिनेमा का महादानव




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