प्राचीन भारत की दण्डनीति | Prachin Bharat Ki Rajniti
लेखक :
दुर्गादत्त त्रिपाठी - Durgadatt Tripathi,
योगेन्द्रनाथ बाग्ची - Yogendranath Bagchi,
शीतांशुशेखर बाग्ची - sheetanshushekhar Bagchi,
सातकडि मुल्लोपाध्याय - Satakadi Mullopadhyay
योगेन्द्रनाथ बाग्ची - Yogendranath Bagchi,
शीतांशुशेखर बाग्ची - sheetanshushekhar Bagchi,
सातकडि मुल्लोपाध्याय - Satakadi Mullopadhyay
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33.64 MB
कुल पष्ठ :
261
श्रेणी :
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दुर्गादत्त त्रिपाठी - Durgadatt Tripathi
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योगेन्द्रनाथ बाग्ची - Yogendranath Bagchi
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शीतांशुशेखर बाग्ची - sheetanshushekhar Bagchi
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सातकडि मुल्लोपाध्याय - Satakadi Mullopadhyay
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका प्राचीन भारतीय शास्त्रों में दण्डनीति दाब्द से क्रिस व्यवहार का निर्देश किया गया है दण्डनोति दाब्द का क्या अर्थ है ? आ्राज इसकी हमारी कोई स्पष्ट निष्चित धारणा नहीं हो पाई है। इसलिये हम उचित समझते हे कि प्राचीन भारत की दण्डनीति कहने पर हम क्या समझें इस बात को स्पष्ट रूप से दिखादें ।. वर्तमावन समय में श्रदालतों में विचारक लोग वादी श्ौर प्रतिवादी का वक्तव्य सुतकर साक्षी श्रौर प्रमाण की सहायता से वादी या प्रतिवादी के प्रतिकूल जो सम्सति देते हे उसको ही हम दण्डविधान के नास से व्यवहार करते हैं । इसलिये दण्डनीति शब्द का प्रयोग करने पर साधारणतः लोग प्रचलित विचारालयों की विचार व्यवस्था को हो समझते हें। किन्तु वास्तविक इस दण्डनीति दाब्द के कहने पर विचारालयों की विचार व्यवस्था सात्र ही समझी जाय ऐसा नहीं है । विचारक लोग जो दण्ड की व्यवस्था करते हें वह तो भारतीय दण्डनीति-शास्त्र का एक बहुत छोटा अंश सात्र है। माता पिता जो श्रपने बच्चों-लड़के-लड़कियों का लालन-पालन श्र पोषण करते हैँ उसमें भी दण्डनीति दाबव्द ही कास मे लिया जाता है। ब्रे काम में लगे हुए बच्चे को प्रिय वाक्यों द्वारा जब उसके साता पिता उसको उस ब्रे काम से नहीं हटा पाते हूं तब वे उसको झिड़कियों देकर उस बुरे काम से हटाने की चेष्टा करते हूं। इस सम्बन्ध में एक बड़ी सुश्दर बात नीतिशास्त्रकारों ने कही है। एक बालक को उसका पिता या पिंतू- स्थानापत्र श्रस्प कोई व्यक्ति जब पढ़ाने लगा तब उसने बड़ी मीठी बातों से और भ्रत्यन्त स्नेहुमय सुकोसल व्यवहार से बच्चे के चित को अध्ययन में घ्रवृत्त करने का पूर्ण प्रधास किया । इती व्यवहार को दण्उनीतिशास्त्र में सास उपाय का प्रयोग कहा गया है। बालक जब सीठी बातों तथा स्नेह प्रचुर व्यवहार से श्रप्ययन सें प्रबुत्त न हो सका तब उसके पिता थ्रादि ने अनेक तरह फे घ्रलोधन देकर उसके चित्तकों अध्ययन सें लगाने का प्रधास किया--उंसे-बत्स . तुमफो बड़े ग्रच्छे-प्रच्छे खिलौने देंगे श्रच्छी श्रच्छी चीजें खाने को देंगे बड़ी सुन्दर तसवीरों वाली पुस्तकें देंगे। ये सब बातें कहकर ही वे नहीं रह गये बल्कि ये सब चीजें उसको ला भी दीं । इसी को दण्डनीतिशास्त्र सें दान उपाय का प्रयोग
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