ग्रीस और रोम की दन्त कथा | Grees Aur Rom Ki Dant Katha

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Grees Aur Rom Ki Dant Katha  by चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा - Chturvedi Dwarakaprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतिथि सत्कार का फल 1 ४ परकारी ( हंसते हंसते ) वगों बुद़िया यह तो तू हम लोगों का नेयता कर रही है। देखना मैं किस घहादुरी से खाता हूं । मुझे जाज जितनी भूख लगी है उतनी पहिले कभी नहीं लगी थी । वासिस ने डर कर फाइलयूपन के कान में धीरे से कहां- यदि इस जवान को ऐसी भूँख लगी है तब तो झाधघा भी सेाजन न निकलेरा | इसको बाद थे सब कुठी के भीतर चले गये । भीतर भोजनों के लिये थाली रखी हुई थी उसमें थाड़ा सा मपखन रोटी का पक टुकड़ा कुछ अंगूर और थोड़ा सा शहद रखा था | एक छाटे से घड़े में कुछ दूध था । पहिंले बाखिस से दोनों याजियों को दो बेलों से भर कर दूध्ध दिया । थे दोनों खब दूध एक घूट ही में पी गये | मरकरी से कहा- मरकरी-बूढी माँ झ्राज दम लॉग दिन भर बहुत अले है सौर दिन में गर्मो भी बहुत थी इस लिये हमें बड़ों प्यास लगी है । कृपा कर हमें थाड़ा सा दूध और दो घाखसिस बड़े असमझस सें पड़ी । अन्त में उसने कहा-मैं बड़ी दुःखी भौर लज़ित हू | पर असल बात यह है कि घड़े मे पक बूँद भी दूध नहीं है । यह सुन कर मरकरी उठा शरीर हाथ में घड़ा ले कर बोला- नहीं नहीं जैसा तुम कह रही हो अलल मे बह घात नहों है देखे--घड़े में भ्रथी कितना दूध है यत कह कर उसमे दूध से अपने श्ौर अपने साथी के कार की भर दिया । यह देख वासिस की बड़ी झावश्यय




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